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[10.4] जहाँ मार खाते थे वहाँ तुरंत छोड़ देते थे
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फिर उन्होंने कोई भी रिस्पॉन्स नहीं दिया ठीक से, जैसा होना चाहिए वैसा कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला। रूठा हुआ इंसान रिस्पॉन्स ढूँढता है लेकिन कभी-कभी उसे कोई पूछने वाला नहीं भी मिलता। उसके बाद किसी ने पूछा नहीं और शाम हो गई।
हाँ, मैं रूठ गया था इसलिए मुझे नहीं बुलाया। तब मैंने कहा, 'अब तो कोई मनाने भी नहीं आ रहा। फिर मैं अपने आप ही जाकर बैठ गया। मैंने कहा, 'मुझे तो दूध और रोटी खानी है, भूख लगी है। तब उन्होंने दे दिया। वे तो तैयार ही थीं न! जो रूठता है उसका चला जाता है। उनके पास तो सब तैयार ही था, बल्कि जितनी देर रूठे रहते हैं उतनी देर तक नहीं मिलता फिर वापस मिल जाता है। उन्होंने एक बार रिस्पॉन्स नहीं दिया तो मैंने ले लिया।
हिसाब में पता चला, है मात्र नुकसान उसके बाद मैंने उस दिन क्या-क्या खोया उसका हिसाब लगाया। उस दिन सुबह का दूध तो चला गया और हम रह गए। बल्कि दोपहर का भी गया। बल्कि जो दोपहर का लाभ था वह भी खोया और शाम को जहाँ थे वापस वहीं के वहीं। माने, तब तक में तो बल्कि नुकसान हो गया। वह मैंने ढूँढ निकाला। तब फिर जब भी रूठता था तब खाने की वह चीज़ तो चली जाती थी लेकिन फिर उसका असर भी चला जाता था। उसके बाद मैं जाँच करता था कि, 'मुझे क्या मिला?' तो कुछ भी नहीं मिला होता था।
प्रश्नकर्ता : नुकसान हुआ। दादाश्री : नुकसान हुआ बल्कि। प्रश्नकर्ता : क्या नुकसान हुआ आपको?
दादाश्री : नुकसान तो हमें ही हुआ न ! 'दूध का तिरस्कार करके चला गया', ऐसा कहते हैं। क्या कहते हैं ?
प्रश्नकर्ता : तिरस्कार करके चला गया।