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[10.4] जहाँ मार खाते थे वहाँ तुरंत छोड़ देते थे
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लगता था कि यह नुकसान हुआ, लेकिन फिर भी हमने रूठना जारी रखा और आपने कैसे बंद कर दिया?
दादाश्री : मैंने ऐसा सिस्टम रखा था कि अगर एक बार भी पछतावा करना पड़ा तो, फिर दोबारा न करना पड़े। जिस बात का पछतावा किया, उसके लिए फिर से पछतावा करना पड़े, ऐसा नहीं करना है।
प्रश्नकर्ता : दादा, यहाँ तो व्यवहार में रिपीटेड्ली करते ही रहते हैं।
दादाश्री : लेकिन अब क्या हो सकता है ? मुझे ऐसा सब अच्छा नहीं लगता था कि बिना समझे कदम बढ़ाएँ और फिर पछताएँ । बार-बार पछतावा करना भी कोई तरीका है क्या? रूठने के बाबजूद भी मैंने खुद ने नाप लिया कि नुकसान किसे हुआ? वह मुझे पता चल गया। अतः ऐसा दबाव डालने का सिस्टम ही छोड़ दो, त्रागा (अपनी मनमानी करवाने के लिए किया जाने वाला नाटक) करने का। रूठना यानी त्रागा करना।
रूठे हुए इंसान के लिए नहीं खड़ी रहती दुनिया
प्रश्नकर्ता : इस नुकसान को तो तुरंत पहचान लिया, यह तो बनिया बुद्धि हुई न?
दादाश्री : यह ऐसा कुछ नहीं है। बनिया बुद्धि अर्थात् विचारशील बुद्धि, समझदार बुद्धि कहलाती है। नुकसान को पहचानने पर फिर दोबारा नुकसान नहीं उठाएँगे न! तो जो वास्तव में बुद्धिशाली है वह किसी से नहीं रूठता।
रूठने से नुकसान होता है। आप एक दिन रूठकर रात को उठापटक करके अगर नहीं खाओगे तो फिर सब क्या करेंगे? क्या सब जागते रहेंगे? समय होने पर सभी सो जाएँगे। तब फिर नुकसान तो आपका ही होगा न। रूठने से तो तुझे जो आनंद आ रहा होगा न, वह भी चला जाएगा।
फिर क्या रूठने वाले और मनाने वाले? फिर मनाएगा भी कौन भला? ये तो, जब खाने का समय होता है तब कहते हैं, 'चाचा, चलो