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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
गया तब मैं उनके यहाँ रुका था। उन्होंने मुझसे कहा कि "मेरे बहनोई की तबियत अभी बहुत बिगड़ गई है, वे सीरियस हैं। मुझे तो पूरे दिन चैन नहीं पड़ा। परसों ही वहाँ उनसे मिलकर वापस आया। कम उम्र में, 'बहुत ही सिक (बीमार) हैं' उनके यहाँ ऐसा तार आया है।" तब मुझे ऐसा समझ में आया कि इनकी बहन की उम्र पैंतीस-छत्तीस साल है
और पति अड़तीस साल का है तो उसे कितना दु:ख हो रहा होगा? तो यों चिंता कर रहा होगा। उनकी बात सुनकर मुझे भी चिंता होने लगी। उस समय मुझे 'ज्ञान' नहीं हुआ था इसलिए मैं भी खूब सुर में सुर मिला रहा था कि 'भाई हाँ! बहुत बुरा हुआ है यह सब। अब आपको वहाँ देखने जाना पड़ेगा।
तार आया था इसलिए वैसी बातचीत चल रही थी, तब ग्यारह बजे हम यों पलंग पर लेटकर बातें कर रहे थे, वे भी पलंग पर और मैं भी पलंग पर। फिर मैं तो अंदर इमोशनल होने लगा इसलिए फिर नींद ही नहीं आई। ऐसी बातें कर रहे थे इसलिए फिर हमारे मन में ऐसा ही होगा न! फिर मैं भी जागा। मैं भी ज़रा सोच में था, साढ़े ग्यारह हो गए
और वे तो खर्राटे लेने लगे! यों तो बहनोई की चिंता कर रहा था और अभी गहरी नींद सो रहा है ! ऐसा है यह जगत् ! तब मुझे लगा कि 'यह आदमी किस तरह का है!' हे भगवान! यह दुनिया ऐसी है? इसके बहनोई की चिंता में मुझे पूरी रात नींद नहीं आई! देख दुनिया! उनके बहनोई के लिए मैं जाग रहा हूँ, मैं परेशान हो रहा हूँ जबकि ये तो खर्राटे ले रहे हैं! इसी को कहते हैं दुनिया। खर्राटे नहीं लेने वाला भी मूर्ख कहा जाएगा और खर्राटे लेने वाला भी मूर्ख कहा जाएगा।
प्रश्नकर्ता : हाँ, दोनों ही। दुनिया का निरीक्षण करके अंत में सार निकाला हमने __दादाश्री : सोना तो पड़ेगा ही न? बहनोई बीमार हों या कुछ भी हो, लेकिन सोना तो पड़ेगा न? हमें तो वह जागृति सता रही थी, जिसकी जागृति कम होती है, वह सो जाता है। फिर मैंने अपने आप से कहा, 'मैं कहाँ बेवकूफ बना!' जिसका बहनोई बीमार था वह सो गया और