________________
[10.5] जाना, जगत् है पोलम्पोल
मैंने उसकी बात सुनी तो मुझ पर असर हो गया ! हम ही मूर्ख हैं ! तभी से मैं इस दुनिया को पहचानने लगा । और कुछ नहीं, उसका दोष नहीं निकाला। सिर्फ नोट करता था कि दुनिया क्या है !
385
प्रश्नकर्ता: दादा, साइन्टिस्टों के जो ओब्ज़र्वेशन होते हैं न, उसी तरह आपके भी सभी ओब्ज़र्वेशन सोचे-समझे हुए थे। सभी ओब्ज़र्वेशन करके और सभी को नोट किया जाता है, वह साइन्स का नियम है। आपने ज़्यादा से ज़्यादा नोट करके ज़्यादा से ज़्यादा सार निकाला, ऐसा प्रत्यक्ष दिखाई देता है !
दादाश्री : इस प्रकार यह सब नोट किया। फिर हमने हिसाब भी लगाया कि न्याय करने जाएँगे तो क्या होगा ? तो कहते हैं, 'अरे! लेकिन अगर वे नहीं सोएँगे तो क्या है? आपने भूल की' । समय होने पर उसका वह साला तो सो ही जाएगा न, तो हमें भी सो जाना है । यह दुनिया तो बल्कि मेरी ही भूल निकालेगी। देख लो न ! हमने इस दुनिया को हर प्रकार से देखा है! और बहुत ही बड़े- बड़े पुरुषों को देखा है। दोनों देखा है मैंने, ऐसा नहीं है कि नहीं देखा है । फिर समझ गया कि यह जगत् पोलम्पोल है।
टेम्परेरी पर चिढ़ शुरू से ही
मुझे तो बचपन से ही हर एक चीज़ पर चिढ़ थी । किस चीज़ पर ? टेम्परेरी पर ।
प्रश्नकर्ता : टेम्परेरी चीज़ों पर चिढ़ थी ।
दादाश्री : टेम्परेरी पर चिढ़ । अब कौन सी चीज़ टेम्परेरी नहीं है ? टेम्परेरी ही है न, यह सब । ये जो डिग्रियाँ हैं, वे सिर पर नहीं लगी हुई हैं, वे टेम्परेरी ही हैं न?
दुनिया को पहचाना, पाप का संग्रहस्थान
प्रश्नकर्ता : आपने दुनिया के बारे में और क्या सार निकाला ?
दादाश्री : मुझे बारह-तेरह साल की उम्र में ऐसा लगा कि यह