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[10.4] जहाँ मार खाते थे वहाँ तुरंत छोड़ देते थे
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दादाश्री : अगर ठीक लगे तो ले लेते थे और नहीं लगे तो रहने देते थे। रूठना-करना नहीं। मैंने यह हिसाब निकाल लिया था कि इसमें पूरा नुकसान ही है, यह व्यापार ही नुकसान का है इसलिए मुझे फिर कभी नहीं रूठना है।
भाभी को दूध ज़्यादा दिया, तब वापस रूठ गए थे
फिर भी उसके बाद मैं एक बार और रूठ गया था, दस एक साल की उम्र में।
प्रश्नकर्ता : दिवाली बा के साथ दूध को लेकर ऐसा हुआ था न ! बा के साथ दूध की झंझट हुई थी न कि मुझे एक पाव, और उन्हें भी एक पाव, एक समान नहीं होना चाहिए।
दादाश्री : हाँ, तो भाभी ग्यारह साल की थीं और मैं दस साल का था। फिर जब वे आईं तो मुझे परेशानी हो गई। मेरे हिस्से के दूध में से मुझे कम मिलने लगा, उसके हिस्से होने लगे न! उन दिनों तो एक पैसे में आधा सेर दुध आता था, दो पैसों में रतल, तो एक पैसे का मैं पीता था और एक पैसे का वे। भाभी को और मुझे, दोनों को एक जितना ही दूध मिलता था, आधा सेर।
एक बार हम शाम को खाना खाने बैठे तब मेरी बा ने भाभी को ज्यादा दूध दिया और मुझे कम। उसके बाद मुझे अंदर से बा पर द्वेष हुआ कि 'बा, आप ऐसा करती हो?' तब मैंने तो झगड़ा किया। मैंने बा से कहा, 'मुझे क्यों कम दे रही हो? मुझे ऐसा नहीं चलेगा। मैं तो अपने लिए दूध अलग से लाऊँगा'। अतः दूसरी जगह से भैंस का दूध ले आता था। मोल लाता था। उनके लिए कोई दूसरा दूध वाला दे जाता था और मैं अपना खुद ले आता था। मैं अपने लिए आधी सेर की लोटी जितना ले आता था। फिर भी मेरी बा हैं न, वे हमारी भाभी को मुझसे ज़्यादा देती थीं। उनकी कटोरी में देखता था तो उसमें ज़्यादा होता था, उससे मुझे अंदर बहुत जलन होती थी।
फिर मैंने कहा, 'अब मैं अपने लिए ज्यादा दूध लाऊँगा'। तब