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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
जाली से 'जय श्री कृष्ण' करें, तब भी चलता है। जबकि यहाँ तो अगर हम 'जय श्री कृष्ण' कहें न, तो कहेंगे, 'हं, रात को तो ऐसा कर रहे थे
और अभी वापस ऐसा कर रहे हैं?' वह वापस रात की फाइल खोलता है। मुए ढंक दे न, अब। जैसे-तैसे करके ढंक-ढंककर निकाल न यहाँ से, लेकिन छोड़ता नहीं है।
दादा की सही पहचान नहीं हुई प्रश्नकर्ता : उनके बेटे तो अमरीका में दादा के एकदम परम भक्त बन गए थे न?
दादाश्री : हाँ, देखो न कि ये सभी बच्चे कैसे दादामय हो गए!
देखो न, वर्ना ब्लड रिलेशन वालों को तो यह प्राप्त ही नहीं होता। दूसरे शहरों में रहने से इन ब्लड रिलेशन वालों का व्यवहार भी कितना सुधर गया है!
प्रश्नकर्ता : अभी कहते हैं कि, 'मैं दादा को मानता हूँ', लेकिन यदि पंद्रह साल पहले पूछा होता तो कहता 'नहीं मानता'।
मुंबई के वे महात्मा उन्हें अमरीका में मिले होंगे न, उनके पास बैठे हुए थे न, तो उन लोगों ने कहा कि 'ये दादा भगवान तो हमारे चाचा ससुर लगते हैं। फिर उन्होंने समझाया कि, 'ये आपके चाचा ससुर हैं, इसलिए आप दादा को पहचान नहीं पाए। लोग इनसे बहुत लाभ (प्राप्त कर) ले रहे हैं।
दादाश्री : ऐसा!
प्रश्नकर्ता : दादा! हम भी आ पड़े हैं। अब हम आपको नहीं छोड़ेंगे।
दादाश्री : नहीं अब आप कैसे छोड़ोगे? महा पुण्यशाली हो। प्रश्नकर्ता : अब ये चरण हम नहीं छोड़ेंगे, दादा। दादाश्री : ये बच्चे बहुत पुण्यशाली हैं कि इन्हें दादा का लाभ