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[10.3] ओब्लाइजिंग नेचर
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अपनी तारीफ पसंद थी और हेतु यह था कि 'उसे दुःख न
हो'
इनकी बराबरी कैसी की जाए, इस दुनिया की? और शायद अगर दो आने डाल भी दिए तो क्या नुकसान हुआ? वे तारीफ तो करेंगे न, 'ये तो बहुत कम भाव में ले आए, बहुत अच्छा लाए'।
प्रश्नकर्ता : उनकी तारीफ से हमें क्या मिला?
दादाश्री : वह तो, जब वे तारीफ करते थे तब पता चलता था। तारीफ सुनते समय वह जो चाय (मान) मिलती थी न, उस चाय की कीमत इस चाय से ज़्यादा थी। मुझे वह तारीफ बहुत अच्छी लगती थी, इसलिए मैं पैसे डालता था।
मेरा हेतु तो यही था कि उसे दुःख न हो। लेकिन किसी भी तरह खुद के पैसे डालकर दे देता था। ऐसी छोटी-छोटी आदतें थीं सारी। इन बातों की ज़रूरत ही नहीं है न! लेकिन यह भी हेल्पिंग है। ये सारे कदम मेरे लिए हेल्पिंग हो गए।
तो अपने पैसे डालकर दे देते थे तो कोई क्लेम नहीं रहा न! नो क्लेम!
आठ आने के लिए शंका करके प्रेम तोड़ दें, ऐसे लोग
पहले से ही ऐसे सावधानी रखता था, क्योंकि अगर कोई आरोप लगा देता तो वह मुझे अच्छा नहीं लगता। अगर उसके मन में शंका हो जाती तो वह मुझे अच्छा नहीं लगता। मैं तो, दो आने की चाय पीने के बजाय वे दो आने इसमें डाल देता था। ऐसा करता था ताकि उसके मन में शंका न हो। बेकार ही शंका हो जाती उन बेचारों को!
शंका हुई तो प्रेम टूट जाएगा न! अगर शंका हो तो प्रेम कहाँ रहा? मूल रूप से तो बेहिसाब शंकाएँ हैं और फिर उनमें मैं एक और जोड़ दूं। कितनी शंकाएँ होती हैं इंसान को?
प्रश्नकर्ता : बहुत सी।