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[10.1] शुरू से ही असामान्य व्यक्तित्व
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किसी के लिए भी दखल रूप नहीं होना
प्रश्नकर्ता : तो दादा, आप शुरू से ही सरल थे यानी कि किसी को दखल रूपी नहीं हुए?
दादाश्री : किसी के भी लिए दखल ( रुकावट) रूप बनेंगे तो सब से पहले दखल खुद को ही आती है । अर्थात् इतने सरल हो जाओ कि किसी को ज़रा सी भी दखल न हो, तो आपको भी दखल नहीं होगी। मैंने शुरू से इसी तरह की प्रेक्टिस रखी है । मैंने तो बचपन से यही तरीका रखा है क्योंकि दखल करने के बाद हम खुद दखल रूपी हो जाएँगे ।
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कपट व ममता थे ही नहीं
प्रश्नकर्ता: दादा, बचपन से ही आपमें कपट नहीं था, तो कपट और कुटिलता एक ही हैं या अलग-अलग हैं?
दादाश्री : इसमें ऐसा है कि कपट और कठोरता, ये दोनों अगर साथ में हों, तो उसे कुटिलता कहते हैं । अब ये सारे दूसरे पक्ष वाले जो मानते हैं न, उनसे अगर आप अपनी करने जाओगे तो वे यह बात नहीं मानेंगे, क्योंकि वे सरल नहीं हैं न ! यदि सरल होता तो जहाँ जाता, वहीं पर सरल। अपने यहाँ पर आए और अगर वह सरल है तो बात को एक्सेप्ट करेगा, किसी और की बात होगी फिर भी । किसी और की बात सही हो तो उसे एक्सेप्ट कर ले, ऐसा सरल होना चाहिए। बचपन से यह हमारा मुख्य गुण था, सरलता । कपट का रास्ता ही नहीं था बिल्कुल
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भी । कम, बहुत ही कम । ममता की अटकण (जो बंधन रूप हो जाए) भी नहीं थी, बहुत ही कम । संसार में बड़े बनने की इच्छा थी ! पहले थी लेकिन वह सब तो मिट्टी समान निकला। इसमें ( धर्म में ) इच्छा नहीं थी, पूजे जाने की कामना नहीं थी ।
प्रश्नकर्ता : इसमें पूजे जाने की कामना नहीं थी ?
दादाश्री : नहीं, ज़रा सी भी नहीं । भीख ही नहीं थी न, उस तरह की ।