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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
की झंझट है, टकराव है, जो भी कर्म किए हैं इस वजह से सारे ऋणानुबंध हैं, हिसाब चुकाने हैं।
अतः धीरे-धीरे हम तो व्यवहार में से बाहर निकल गए। मुझे यह अच्छा भी नहीं लगता। मामा के बेटों से, सभी से कह दिया था कि 'आप जितना रिश्ता रखोगे, मैं उतना नहीं रखूगा'।
प्रश्नकर्ता : ठीक है।
दादाश्री : 'मैं व्यवहार से रखूगा, वह भी नाटकीय रखूगा और आप सच्चे दिल से रखोगे,' सभी रिश्तेदारों को ऐसा बता दिया। क्योंकि हमारे नाटकीय सगाई (प्रेम) को आप ऐसा मानने लगते हो कि, 'दादा को मेरे प्रति बहुत प्रेमभाव है'।
प्रश्नकर्ता : नाटकीय प्रेम में भी भाव तो प्रदर्शित किया जा सकता है न?
दादाश्री : बल्कि और भी ज्यादा भाव दिखाई देता है। प्रश्नकर्ता : हाँ, बल्कि ज़्यादा दिखाई देता है।
दादाश्री : इसलिए झगड़ा नहीं होता कभी भी जबकि सचमुच की रिश्तेदारी में आसक्ति रहती है इसलिए झगड़ा हुए बगैर रहता ही नहीं। इसमें आसक्ति नहीं है बिल्कुल भी। लीजिए अपनी पुस्तकें और ज्ञान वापस, तब भी हम वीतराग
प्रश्नकर्ता : आपके कुटुंब में से किसी ने ज्ञान लिया हो, तो उनका अनुभव कैसा रहा?
दादाश्री : वह भाई कह रहा था न कि 'दादा, अब आप निकाल देंगे फिर भी हम कहाँ जाएँ? अब हमें तो यहीं पर आना पडेगा। क्योंकि आप हमें उस रास्ते पर ले गए हैं, तो अब हम अकेले वापस कैसे लौटें?'
प्रश्नकर्ता : उन्होंने वापस जाने का रास्ता चुन लिया है क्या? दादाश्री : और आनंद सहित है इसलिए फिर इच्छा ही नहीं