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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
लगा आओ'। लाख रुपए आने से पहले कोई न कोई बम (खर्च) आ जाता है और फिर खर्च हो जाते हैं। यानी जमा तो होते ही नहीं है कभी भी और कमी पड़ी नहीं। बाकी कुछ भी दबाया करा नहीं है। अगर हमारे पास पैसा आएगा, तब दबाएँगे न? वैसी रकम आती ही नहीं है तो दबाएँगे कैसे? और हमें वैसा कुछ चाहिए भी नहीं। हमें तो न कमी पड़ती है, न ज्यादा आता है। देखकर शुद्धात्मा, लटू के लिए नहीं रखा अभिप्राय
प्रश्नकर्ता : जब ऐसा सुनते हैं तब लगता है कि दादा ने सारे, कितनी तरह के एडजस्टमेन्ट लिए होंगे!
दादाश्री : हाँ, जो किस्मत में लिखा है, उससे तो छूट ही नहीं सकते न! हमारे गाँव के थे, चचेरे भाई थे इसलिए हमें भी सीधे रहना पड़ता था उनके सामने। अगर कभी बुरा लग जाए न, तो वापस सही करना पड़ता था। हाथ वगैरह फेरना पड़ता था।
लेकिन यह सब ड्रामेटिक था। कैसा? अगर ड्रामे में अभिनय नहीं किया जाए न, तो मालिक दंड देगा। ये जो रिश्तेदार होते हैं न. वे तो मुझसे ऐसा कहते हैं कि, 'आप तो अब सत्संग करने लगे हो। आपको तो अब दुनिया की कुछ पड़ी ही नहीं है। मैंने कहा, 'अरे, नहीं! आपके बिना मुझे अच्छा ही नहीं लगता'। जब ऐसा कहते हैं तो फिर वे वापस खुश हो जाते हैं ! लो, वापस भूल जाते हैं ! वे भी भूल जाते और हम तो भूलकर ही बैठे हैं न! फिर हम नाटक करते हैं। 'आपकी तो बात ही अलग है, आप तो ब्लड रिलेशन वाले हो'। ऐसा सब नाटक करते हैं वापस। देखो! अपने आप ही भादरण जाकर आए हैं न हम? चचेरे भाईओं से भी दूरी नहीं रखी। गाँव में से एक-दो लोग नहीं आए थे, जो बहुत ही विरोधी होंगे, वे। बल्कि उन दो लोगों ने क्या किया? बल्कि उन्हें जहाँ पर भी लोग दिखाई देते थे तो वहाँ कह आते कि 'दादा भगवान आए हैं, हं'। तो एक व्यक्ति ने कहा भी सही कि, 'वह तो बल्कि आपका प्रोपगेन्डा (प्रचार) कर देंगे'। हाँ, वे तो जगह-जगह पर कहकर आए ! 'वहाँ मत जाना, दर्शन करने'। ऐसा