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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
प्रभाव ही ऐसा था। जैसा अच्छे-अच्छे ठाकुरों का भी न हो, वैसा प्रभाव था उनका और वाणी भी वैसी थी। इतना अधिक प्रभाव पड़ता था। चेहरे पर प्रभाव! उसे योगीपन कहते हैं। उन्हें देखते ही घबराहट हो जाए हम सब को। इतना अधिक ताप लगता था हमें कि न पूछो।
प्रश्नकर्ता : लेकिन अब यह क्लू मिला कि डर क्यों लगता था! पूर्व जन्म के योगी थे और उन योगियों का ताप ज़बरदस्त होता है।
दादाश्री : बहुत ताप, बहुत ताप। इतना ताप था कि उनके पास सोएँ तो वह भी सहन नहीं हो सकता था।
भाई ने टोका, 'तुझे घोड़ी पर बैठना नहीं आया'
प्रश्नकर्ता : दादा। मणि भाई ने आपको कभी टोका हो, कोई गलती बताई हो, ऐसी कोई बात बताइए न !
दादाश्री : उनकी घोड़ी ने मुझे भी एक बार गिरा दिया था। फिर घर आकर मैंने बड़े भाई को यह बताया। अब तेरह साल की उम्र में मैंने ऐसा कहा कि 'इस घोड़ी ने मुझे गिरा दिया, मुझे लग गई है'। तब उन्होंने कहा, 'यह घोड़ी इतनी कीमती है तो क्या वह गिरा देगी? तुझे बैठना ही नहीं आया होगा'।
बाद में मैंने बहुत सोचा कि इतनी अच्छी घोड़ी जो किसी को नहीं गिराती, तो उसने मुझे गिराया या मैं गिर गया? मुझे बैठना नहीं आया या उसने गिरा दिया? फिर मुझे समझ में आ गया कि मुझे बैठना ही नहीं आया था।
मैं समझ गया। मैंने कान पकड़ लिए। हमें बैठना नहीं आया। निक्कमे गिर जाते हैं! और फिर लोगों से क्या कहता है कि 'घोड़ी ने मुझे गिरा दिया' और घोड़ी अपना न्याय किसे बताने जाए? तुझे घोड़ी पर बैठना नहीं आया उसमें तेरी गलती है या घोड़ी की? और घोड़ी भी उसके बैठते ही समझ जाती है कि 'यह तो जंगली जानवर बैठा है, इसे बैठना ही नहीं आता'।