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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
बाहर खड़ा रखकर वे अंदर आए। मुझसे पूछा, 'बेटे को अंदर बैठा दूं, धूप में खड़ा है ?' मैंने कहा, 'नहीं भाई, मेहरबानी करके मेरे यहाँ मत बैठाना। इस लड़के को मेरे यहाँ नहीं बैठा सकते'। वह चोरी नहीं करता लेकिन धूर्तता तो करता ही है। 'मैं अंबालाल चाचा का भतीजा हूँ। मैं आपके लिए मिट्टी का तेल ला दूँगा, वह ला दूंगा'। कंट्रोल के समय में तो लोगों को अगर मिट्टी का तेल मिल जाए तो बहुत मज़ा आ जाता था न? तो वह रुपए लेकर भाग गया, उसने लोगों के रुपए वगैरह वापस नहीं किए। उसकी शिकायत आई, इसलिए मैं उसे घुसने नहीं देता था, 'मेरे घर में नहीं, यहाँ पर नहीं घुसने दूंगा'।
फिर मैंने कहा, 'पूरी फैमिली में सिर्फ आपके यहाँ पर ऐसा बेटा जन्मा!' अंदर आपकी चोर दानत होगी, माँ-बाप की दानत चोर होगी तभी ऐसा बेटा पैदा हुआ। ऐसा क्यों पैदा हुआ? मैं तो ऐसा सख्त बोलता
था। उस समय ज्ञान नहीं था इसलिए व्यवहार में मैंने क्या कहा? कि 'इस घर को अपवित्र मत करना'। तब वह लड़का बाहर से कहने लगा कि 'दादाजी, मुझे माफ कर दीजिए'। तब मैंने कहा, "मैं माफ कब करूँगा कि जब तू अपना सिर मुंडवा देगा और फिर गाँव में सभी से कहेगा कि, 'ठगकर मैंने जिस-जिस के पैसे लिए हैं, मैं उन सब के पैसे लौटा दूंगा', और तू सब को वापस देकर आना।"
चोरी करके नहीं लाया था लेकिन ऐसा सब भी गलत ही कहलाएगा न? लोग बेचारे विश्वास से देते हैं और लोग यह सब इस नाम से देते हैं कि, 'अंबालाल का भतीजा है'। तो सिर के बाल मुंडवाने की शर्त रखी और घर बैठे तनख्वाह, इसके अलावा कुछ भी नहीं करना होगा। मैं जो पैसे दूँ, वे सारे पैसे भादरण में माँगने वालों को देकर आना, जिन-जिन को छला हो, उन्हें। लेकिन उसने छ: महीने ऐसा करने के बाद फिर नहीं किया। क्या मैंने उसे गलत रास्ता बताया था?
प्रश्नकर्ता : अच्छा था, दादा। दादाश्री : पैसे देता था, तो घर बैठे सभी को दे आता था और