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[9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे
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दादाश्री : आप ज्यादा टेढ़े थे... प्रश्नकर्ता (कांति भाई) : मैं तो ज़्यादा... अत्यंत । दादाश्री : आप तो सौ प्रतिशत। प्रश्नकर्ता (कांति भाई) : सौ प्रतिशत।
दादाश्री : अभी तो, यह पाँच पुलिस वालों को यहाँ पर पकड़कर ले आए। इन्स्पेक्टरों को भी पकड़कर ले आए।
प्रश्नकर्ता (2): वे अभी बता रहे थे न कि, 'मैं यहाँ आता था न, तो अहमदाबादी पोल के लड़कों को मारते-मारते आता था'।
दादाश्री : हाँ, तो यही देखना है! ये यही दिखा रहे हैं।
प्रश्नकर्ता (कांति भाई) : आपने यदि मेरे लिए यह नहीं किया होता तो क्या मैं अभी यहाँ तक पहुँच पाता? नहीं पहुँच पाता। आपने ही मुझे ज़ीरो में से अव्वल बनाया है।
दादाश्री : हाँ, लेकिन ऐसा कोई कहता नहीं है न। कहकर नहीं बताता। ये खुद तो उपकार भूलते ही नहीं हैं न। इसी को मानवता कहते हैं, देवपना कहते हैं। ये इंसान नहीं कहलाएँगे, देवता कहलाएँगे।
प्रश्नकर्ता (कांति भाई) - महात्माओं से : इन दादा भगवान ने मुझे इंसान बनाया। दादा भगवान का एक ही आशीर्वाद काफी है। अगर आपको एक ही आशीर्वाद दे, लेकिन उस आशीर्वाद को पकड़कर रखो तो, अमल में लाओ तो पूरी जिंदगी सफल हो जाएगी।
बाकी, मेरा तो बहुत चलता था बात-बात में। आपमें से, कोई कुछ भी बात करे तो मेरी स्प्रिंग उछल जाती थी। किसी में अगर थोड़ा-बहुत क्रोध हो तो उसे कंट्रोल किया जा सकता है, लेकिन जिसे सौ प्रतिशत क्रोध आता हो, उसे कंट्रोल करना तो बहुत मुश्किल है। उस पर मेरा सौ प्रतिशत कंट्रोल हो गया, ये उसे जीरो पर ले आए। आज इनकी वजह से मैं सुखी हूँ, बस। बाकी, समझो न, अगर ऐसा कहें तो भी चलेगा कि 'इन्होंने मुझे जानवर में से इंसान बनाया'।