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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
प्रश्नकर्ता (कांति भाई) : तब आपने कहा था कि, 'भाई को मैं ले जा रहा हूँ।
__ तब आपने मुझे सीधा वसई कोर्ट में, जहाँ काम चल रहा था वहाँ रख दिया। फिर मुझे कोसबाड़ के काम पर रखा। ठीक है?
दादाश्री : हाँ...
प्रश्नकर्ता (कांति भाई) : यदि आपने नहीं रखा होता तो कब का खत्म ही हो चुका होता।
दादाश्री : हाँ।
प्रश्नकर्ता (कांति भाई): अगर आपने नहीं रखा होता तो फिर मेरी जिंदगी कैसे सफल होती?
___ हाँ, लेकिन आपने रखा, उसके बाद सभी को लाइन पर लगा दिया।
दादाश्री : अच्छा है। हमारा तो यही काम-धंधा है न!
प्रश्नकर्ता (कांति भाई) : आपने सब को जीवनदान दिया। ठीक है न?
दादाश्री : निमित्त हूँ।
प्रश्नकर्ता (कांति भाई) : सीधे लोगों को तो सभी रखते हैं, लेकिन जो टेढ़ों को रखे वह मर्द ।
दादाश्री : ये सब टेढ़े ही हैं! प्रश्नकर्ता (2) : पूरी तरह से टेढ़े थे, दादा। दादाश्री : आप भी टेढ़े... प्रश्नकर्ता (कांति भाई) : मैं तो बहुत ही था। प्रश्नकर्ता (2) : हम अंदर से बहुत टेढ़े।