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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
दादाश्री : दुनिया में सभी तरह के खेल होते हैं। मुझे तरह-तरह के लोग मिले हैं!
प्रश्नकर्ता : उसमें भी इस तरह से निकाल (निपटारा) लाना वह तो बहुत बड़ी बात है।
दादाश्री : वहाँ आफ्रीका जाकर भी, जो कोई भी उनकी दुकान पर आता है तो वे उनसे कहते हैं कि, 'ये सब मेरे नौकर हैं, मैं ही सेठ हूँ। यह रणछोड़ भाई नौकर हैं, रावजी भाई नौकर हैं, सभी मेरे नौकर हैं'। ऐसा कहते थे। एक पैसा भी नहीं कमाया, और पूरी जिंदगी ऐसे का ऐसा ही रहा।
फिर एक दिन मुझे रणछोड़ भाई ने कहा कि, 'इसके साथ कोई संबंध रखने जैसा नहीं है। इसे कहीं भी खडा रहने देने जैसा नहीं है। मैंने कहा, 'ऐसे परेशान होने से क्या होगा? उसे हमारे नज़दीक जन्म किसने दिया? निकाल देंगे तो फिर से आएगा किसी जन्म में, उसके बजाय निकाल ही कर दो न, उसके साथ'। तो मुझसे कहा, "उसके साथ कैसे रह सकते हैं?' मैंने कहा, 'सब से अच्छा इंसान है यह। मुझे तो गाली दे जाता है कि मेरे चाचा बेअक्ल हैं, ऐसे हैं, वैसे हैं, लोभी हैं लेकिन भाई, हमें उस तरफ का भय नहीं है कि वह हज़ार रुपए माँगने आएगा। पाँच रुपए भी नहीं माँगेगा जिंदगी में। वह क्या कोई कम फायदा है? यह सब से बड़ा फायदा है!' तो कहते हैं, 'हाँ, वह बात सही है, नहीं माँगेगा'। 'और अगर किसी और को आप पार्टनर बनाओ तो चाहे वह बहुत अच्छा हो, बहुत ही काबिल हो, बहुत ही विनयी हो लेकिन पाँच हज़ार लेने आए न, तो उसे फेल कर देना और इसे पास कर देना' ऐसा कहा।
___ 'अगर हो सके तो आप इसे रुपए देकर देखो? यह कहता है या नहीं कि आप गरीब इंसान हो। जो रुपए नहीं लेता पहले उनका अनुभव करना चाहिए, चाहे वह कितनी भी गालियाँ दे फिर भी। जबकि मीठा बोलने वाले तो पाँच हज़ार लेने ही आए होते हैं। जबकि इनको स्वार्थ नहीं आता। स्वार्थ-व्वार्थ की झंझट ही नहीं न! उनके आने पर अगर