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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
भी रोग नहीं, सिर्फ यही रोग। तब मैंने कहा, 'यह रोग (औरों को खिलाने-पिलाने का) तो मुझे पसंद है। ऐसा रोगी हो और अगर उससे कुछ नहीं हो पा रहा हो तो फिर मैं इतना तो कहूँगा कि, 'कुछ नहीं तो लोगों को चाय पिलाकर खुश करना'। लेकिन उसमें तो मेरा मनपसंद रोग था। मैंने कहा, 'भले ही खर्च करे'। उसका मान पुसाता था। बस, ऐसा कहा कि, 'तुझे चाय-नाश्ता करवा देना है'। नाश्ता-वाश्ता करवाता था। अभी तो ज़रा आमदनी ठंडी पड़ गई है। फिर भी मर्द इंसान है ! चाहे कैसा भी काम हो, प्रधानमंत्री के पास जाना हो तो जा आए, ऐसा था लेकिन आज पाँच सालों से ऐसी शक्ति नहीं है। बाकी, ऐसा था कि प्रधानमंत्री के भी दस्तखत ले आए। सबकुछ करना आता है। करेक्ट तरीके से । अंदर से साफ। दूसरी कोई दानत ही नहीं थी। सिर्फ यही।
ऊपर से कहता था, 'दादा, आपका भतीजा हूँ न! बाकी बहुत खराब गुण नहीं है। आपका एहसान है, आप कितने बड़े मन वाले हैं !' फिर वह लड़का साफ हो गया, फिर प्योर हो गया। फिर तो हाई लेवल का हो गया। मिल के सेठ के लिए तो उसकी कीमत बहुत बढ़ गई, लेकिन यों सुधर गया। ___अतः अगर इस तरह का एक वाक्य भी समझ ले न, तो बहुत हो गया।
किस तरह नेगेटिव गुण को पॉज़िटिव में बदले?
अब अगर एक लड़का चोर है, तो उसमें उसके माँ-बाप को और घर वालों को कितना ही हाय हाय, बाप रे बाप होता रहता है। अरे, अगर लड़का चोर है तो यह हाय हाय, बाप रे बाप क्यों कर रहे हो? 'अरे भाई, ऐसा तो होता है। तूने इसका क्या उपाय ढूँढा है ? उसे फेंक
देना है?' तब कहते हैं, 'नहीं, फेंक तो कैसे सकते हैं?' 'तो भाई, तू उपाय बता मुझे'। तब उसने कहा, 'नहीं, इसका कोई उपाय नहीं है। तभी हमें कहना है कि, 'यह लड़का तो बहुत ही अच्छा है'। उसे चोरी करना तो आता है न! कुछ तो आया न इसे?