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[9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे
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वह ऐसा आदमी था कि एक बार मेरी मदर को भादरण जाना था। वह बड़ौदा स्टेशन पर आया। मुझसे पूछा, 'बा को कहाँ बैठाएँगे?' मैंने कहा, 'भाई, बा को गाड़ी में बैठाना है'। तब उसने कहा, 'नहीं, मैंने स्टेशन मास्टर जी से कह रखा है। हमारे दादा की बा आ रही हैं'। 'अरे, स्टेशन मास्टर जी से हमें क्या लेना-देना?' और मुझे तो बोझ, बोदरेशन लगता है। हमें ऐसी जान-पहचान क्यों चाहिए? हमें न तो बेटे की शादी करनी है और न ही बेटी की, तो फिर हमें स्टेशन मास्टर जी से क्या काम है? हमें टिकट लेकर यहाँ बैठना है। उसे ऐसा रौब दिखाना था कि 'मेरे दादा!' इसलिए जाकर स्टेशन मास्टर जी से कहा, 'पता है कौन आए हैं ? ज्ञानी हैं और ऐसा सब है'। वह मास्टर तो बेचारा काँप गया। उस बेचारे ने वहाँ पर रूम खोलकर दे दिया। जहाँ बैठाते हैं, वह!
प्रश्नकर्ता : हाँ, वेटिंग रूम।
दादाश्री : वेटिंग रूम। तो बा को वहाँ पर बैठाया। फिर मैंने कहा, 'भाई, बा से चला नहीं जाता और गाड़ी चल पड़ेगी तो फिर परेशानी हो जाएगी। तू बा को वहाँ पर ले जा और वहाँ कुर्सी पर बैठा दे'। 'दादाजी, बा को आराम से बैठने दो'। उसने ऐसा कहा और गाड़ी चल पड़ी। मैंने कहा, 'अरे मुए, यह क्या किया? अब बा कैसे दौडेंगी?' उसने कहा, 'कोई परेशानी नहीं दादाजी। आप बा को बैठे रहने दो। उसने गई हुई गाड़ी को वापस बुलवाया और बा को बैठाने के बाद गाड़ी चली। यानी वह जो पैसे खर्च करता था न, उसके पीछे यह बल था।
यों पैसे पानी की तरह बहाता था और रेल्वे के पैसे नहीं
भरता था
फिर वापस उसने क्या किया? कॉन्ट्रैक्ट का काम था हमारा। कॉन्ट्रैक्ट का काम था तो माल तो ले जाना पड़ता था न? तो हर बार स्टेशन पर से हमारा माल ले आता था। मुंबई से माल लेकर आता था रेल्वे में, तो वज़न करवाना चाहिए न? वज़न करवाकर। बहुत वज़नदार