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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
लाल ने छाछ पिलवाई। उन्होंने छाछ पीने को कहा और उससे विकार हो गया। पेट बिगड़ गया।
प्रश्नकर्ता : हाँ, बिगड़ जाता है, छाछ भारी रहती है।
दादाश्री : उस छाछ की वजह से परिणाम बदल गया। डॉक्टर की वजह से बिगड़ा अंतिम उपवास के दिन। डॉक्टर को उपवास छुड़वाना नहीं आया। डॉक्टर से वह भूल हो गई। इसलिए क्योंकि उनका हिसाब रहा होगा।
वैष्णव डॉक्टर के हाथों से बिगड़ने के बाद जैन डॉक्टर को बुलाया। उसके बाद अपने वे प्राण लाल आए तो उन्होंने कहा कि 'नहीं, ऐसा नहीं करना चाहिए। इसमें तो मूंग का पानी देना चाहिए। छाछ क्यों पिलाई ? वह नहीं देनी चाहिए। अभी तो मूंग के पानी की ही ज़रूरत थी क्योंकि इकतीस दिन का उपवास छोड़ना था। यह सब क्या है ? अब तो अंदर सब उल्टा हो गया है। यह बहुत बड़ी भूल हो गई है।
तब कहा, 'जो होना था, समय आने पर वह हो गया'। यह जो होना था वह हो गया। जैन डॉक्टर नहीं आए और वैष्णव डॉक्टर आ गए। अगर पहले जैन डॉक्टर आ जाते तो...
प्रश्नकर्ता : पता चल जाता कि क्या देना है।
दादाश्री : हाँ... मूंग का पानी पिलवाते। और इस वैष्णव डॉक्टर ने तो क्या पिलवाया? छाछ पिलवा दी, फीके दही की। यानी उन्हें उपवास छुड़वाना नहीं आया। रमण लाल डॉक्टर से ऐसी भूल हो गई,
और वे निमित्त बने। अब वे तो निमित्त मात्र हैं। हम उन्हें गुनहगार नहीं मानते हैं लेकिन भाई की जो मृत्यु हुई न, तो वे खुद उपवास करके मरे थे। इकतीस उपवास करने के बाद उनकी तबियत बिगड़ने की वजह से उनकी लाइफ फेल हो गई। 'मैं हूँ पूर्व जन्म का योगी' अंतिम चौबीस घंटों में ऐसा कहा था
मरने से पहले बड़े भाई दो-दिन तक बोलते रहे। क्या कह रहे