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[8.3] व्यवहार लक्ष्मी का, भाभी के साथ
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'आपको पैसों की ज़रूरत हो तो दूंगा। दस हज़ार जितना दूँ तो चलेगा?' उन्होंने कहा 'बहुत हो गया'। मैंने कहा, 'मुझे आपको दस हज़ार रुपए देने हैं, लेकिन दस हज़ार नकद नहीं दूंगा हाथ में। ब्याज मिलेगा आपको हर महीने सौ रुपए। आपको तो ब्याज ही चाहिए न?' तो कहा, 'हाँ'। मैंने कहा, 'इस भाई के यहाँ रख रहा हूँ। हर महीने सौ रुपए ब्याज देंगे'। तो फिर आकर उन्होंने सिस्टम ढूँढ निकाला। मुझसे कहा, 'मेरे पास ये चार हज़ार है, मैं खर्च कर दूँ दान में?' तब मैंने कहा, 'कर दो'। उनके भतीजे से मैंने कहा, 'ये दस हज़ार रख रहा हूँ, उसका तू ट्रस्टी बन जा। दो लोगों का ट्रस्ट बनाते हैं'। तब कहा, 'नहीं भाई, उनके काम में रहा तो मुझे गालियाँ खानी पड़ेंगी'। कोई भी व्यक्ति खड़ा नहीं रहता था। उन्हें सिर्फ उनके भाई ही बेचारे संभालते थे।
प्रश्नकर्ता : यानी आप जान-बूझकर छले जाते थे।
दादाश्री : पूरी जिंदगी जान-बूझकर छला गया। कुछ लेना भी नहीं और देना भी नहीं, फिर भी!
उनका दोष देखा ही नहीं, मेरी ही भूल __ अब उनका दोष नहीं था, लेकिन मैं किस तरह निभा रहा होऊँगा? कभी उनका दोष ही नहीं देखा। मेरी ही भूल है यह। हिसाब है न यह सारा। अन्य कोई बैर होगा न पूर्व जन्म का, वह खत्म किया। गाँव में कोई भी उन्हें अच्छा नहीं कहता था, कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं कहता था, उनका भाई या उनका भतीजा, कोई भी नहीं।
तो फिर मैंने उनके लिए ब्याज पर रुपए रख दिए। उसके अलावा एक हज़ार यों ही उनके हाथ में दिए। उन्हें स्टेनलेस स्टील के डिब्बों की ज़रूरत थी। बाज़ार से खरीदने का कह रही थीं। तब मैंने कहा, 'यहाँ से दे देंगे। आप वहाँ पर हज़ार दे देना, आपको ग्यारह हज़ार का ब्याज मिलेगा। तो एक सौ दस रुपए महीने ब्याज उन्हें देते हैं। उन्होंने कहा, 'भादरण बैंक में रखें तो?' तब मैंने कहा, 'नहीं, यहाँ इनके यहीं पर रखेंगे'।
अब ऐसा सब था लेकिन मैं तो समझ जाता था। वे ऐसा जो