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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
तब मैं कहूँगा, 'खानदानी है इसलिए। नालायक होता तो चोरी नहीं करता। अगर मांगना आता तो'।
प्रश्नकर्ता : अगर माँगना आता तो चोरी नहीं करता।
दादाश्री : हाँ, चोरी नहीं करता। माँगना नहीं आता है इसलिए इस तरह से लेता है। ऐसे लोग हैं या नहीं जिन्हें माँगना नहीं आता? नाक वाले? मैंने कहा, 'हमारे ननिहाल वाले खानदानी घर से हैं।
प्रश्नकर्ता : उसने कहा कि 'मुझे लेने का अधिकार था इसलिए ले रहा था।
दादाश्री : हाँ, ठीक है। लेकिन अधिकार भी कैसा? क्योंकि माँगना नहीं आता। माँगना और मरना दोनों एक समान लगता है। अधिकार तो था न! अधिकार भी इस तरह से नहीं होना चाहिए। पूछे बगैर लेने का अधिकार नहीं होना चाहिए, लेकिन वह भी चलता रहता था। जैसेजैसे धोखा खाया न, वैसे-वैसे मज़ा आता गया।
क्षत्रिय प्रजा सगे भाई से भी नहीं माँग सकती, हाथ नहीं फैला सकती। अतः इस दृष्टि से मैं इस बात को लेट-गो करता रहा। और फिर उसने मुझे बताया कि, 'महीने-दो महीने में जब ज़रूरत पड़ती है तब आपकी जेब में से कुछ पैसे ले लेता हूँ'। मैंने कहा, 'मैं जानता हूँ। उसमें हर्ज नहीं है, क्योंकि उसका हक़ है।
प्रश्नकर्ता : ठीक है।
दादाश्री : आज के क्षत्रियों को तो माँगना भी आता है ! मैं अगर आपके यहाँ रकम रखू, तो फिर मुझे तो जिंदगी भर वापस माँगना नहीं आएगा। तब मुझे अंदर क्या लगेगा? अभी इसके पास नहीं हैं और अगर हम माँगेंगे तो शायद उसे दुःख होगा। ऐसे सब विचार भी आ जाते हैं। अतः अंदर ऐसा सब होता है इसलिए किसी से माँगता नहीं हूँ, सामने वाले को दुःख न हो इसलिए। वे लोग कहते हैं, 'अपने ही हैं न!' मैंने कहा, 'भाई, अपने ही हैं लेकिन उसे दुःख होगा न! अगर अभी उसके पास नहीं होंगे तो?'