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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
वही काम था। न तो खेत में जाते थे, न ही बाहर का काम करते थे। मैं नौकरियाँ दिलवाया करता था और वे लोग मेरे नाम से तनख्वाह देते रहते थे। वह तो घूमता रहता था, और कोई काम नहीं करता था। इसलिए फिर मैंने बंद कर दिया। मैंने कहा, 'वे बेचारे मेरे नाम से कब तक तनख्वाह देंगे?'
तो पूरी जिंदगी उसने नौकरी नहीं की, हमारे उस मामा के बेटे ने। उसे कुछ भी नहीं आता था न! बस! मौज-मज़े और पकौड़ियाँ खाना। एक भाई बड़ा कॉन्ट्रैक्टर था लेकिन वह उसे काम सौंपे तब न? राम तेरी माया। देने-करने का कुछ भी नहीं। सीखा ही नहीं था न! मैंने कहा, 'ज़रा इस भाई का तो देख! और फिर यह छ: बेटियों का बाप है। फिर दहेज भी देना है और कमाता भी नहीं है, यों ही...' फिर उसके भाई से कहा, 'भाई, उसे कुछ रुपए देना'। तब उसके भाई ने मुझसे क्या कहा? 'आप कह रहे हैं तो दे दूँगा वर्ना मैं नहीं दे सकता। मेरे हाथ से नहीं छूट पाते'। मैंने कहा, 'लेकिन मैं तेरे भाई के सामने कहूँ और तू दे, तो यह कैसा नियम है ? मैं तुझे सलाह देता हूँ, मेरी आज्ञा है ऐसा मानकर। मेरे आज्ञा देने पर तू पचास हज़ार दे देता है, और अगर मैं सलाह नहीं दूं तो... लेकिन वह भाई मेरा है या तेरा?'
___ तो एक बार उन्होंने मुझसे कहा कि, 'भाई, मेरी बेटी की शादी है, दस हज़ार रुपए देंगे?' मैंने कहा, 'ले जाना'। उनकी बेटी हीरा बा के लिए खाना बना देती थी। इस प्रकार दस-पंद्रह हज़ार रुपए और दूसरा, हमारे यहाँ उनके बेटे के नाम पर बिज़नेस किया था इन्कम टैक्स बचाने के लिए, उसके एवज में पाँच हजार रुपए और। ऐसा करके बीस हज़ार रुपए दिए थे। उसका सत्तर हज़ार का खर्च हुआ। उसी में पूरा हो गया। अब वह क्या कहता है ? 'भाई, अब बारह महीने में मेरे पास एक लाख रुपए आते हैं तो मुझे अब आपके पैसे दे देने हैं।' मैंने कहा, 'रहने दे न, अब छोड़'। अब, वह एक आना भी नहीं कमाता था। वह अपने बेटे को, जो मैट्रिक पास था, मेरे यहाँ ले आया। और वह बन गया बड़ा कॉन्ट्रैक्टर, बहुत ज़बरदस्त बुद्धि थी। उसने सब से पहले