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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
लोग तो, संयोगवश (चोर) एक दिन चोरी करते हुए पकड़ा जाए तो उसे हमेशा के लिए चोर कह देते हैं, ये तो। अब उस पर आरोप लगाने से कितने गुनाह लगते हैं ? कौन-कौन सी कलमें लगती हैं ? इंडियन लोग संयोगवश चोरी करने वाले को हमेशा के लिए चोर बना देते हैं, जैसे कि उसके मेकर (बनाने वाला) हों। संयोगवश चोर, वह चोर नहीं है, दादा की अनोखी दृष्टि
_ अगर आप चार बार चोरी करो तब भी मैं आपको चोर नहीं कहूँगा, क्योंकि संयोगवश चोरी कर रहे हो। आप चोर नहीं हो जबकि वे चोर तो अलग ही हैं। संयोगवश नहीं, वह तो उनका व्यापार है। हमारे यहाँ तो जो संयोगवश पकड़ा जाए, उसके लिए लोग कहते हैं, 'जाने दो उसका नाम मत लो'। अरे, ऐसा नहीं कहते भाई। तू मारा जाएगा। संयोगवश राजा भीख माँगने लगता है या नहीं? अरे! संयोगवश तो मैं भी भीख माँग सकता हूँ। तीन दिनों तक खाना नहीं मिले तो अंदर आग लगती है, तब 'कहेगा लाओ' माँगेंगे या नहीं? तो यह मनुष्य संयोगों के गुलाम हैं । तीर्थंकर भी संयोगों के गुलाम थे, यह बता देता हूँ। फिर भी एक ओर खुद स्वतंत्र थे। फिर भी, जब तक देह है तब तक गुलामी तो है न! अतः यह गुलामी है एक प्रकार की। अंदर भट्ठी जल रही हो तो क्या हो सकता है?
प्रश्नकर्ता : ऐसा साफ-साफ कौन कहेगा, दादा? दादाश्री : संयोगवश तो राजा भी चोर बन सकता है। प्रश्नकर्ता : हाँ, दादाजी।
प्रेजुडिस रहना, वह एक बहुत बड़ा गुनाह है
दादाश्री : जब (राजा को) तीन दिनों तक खाना नहीं मिले और अगर कहीं पर भीखारी के घर की रोटियाँ रखी हों, तब भी चुपचाप ले लेगा या नहीं? चुपचाप लेना आता है क्या राजा को? जब भूख लगी हो तब सबकुछ आ जाता है। मेरी दृष्टि में पूरी दुनिया ही संयोगवश चोर है। लेकिन संयोगवश चोर को चोर मत कहो, वर्ना भयंकर दोष लगेगा।