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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
मुझसे नहीं होगा। मुझे आपका काम नहीं करना है। मुझे हिस्सा भी नहीं चाहिए'। उसी से मना करवाया।
___मैंने इस तरह सेट कर दिया। मैं समझ गया था कि अगर ऐसा कहूँगा न, तो वह मना कर देगा। अपने आप ही मना कर देगा। मैं उसकी प्रकृति पहचानता था कि यह काँटे वाली प्रकृति है या यह बगैर काँटे की? तो अपने आप ही मना करने लगा और अगर मैंने ही मना कर दिया होता न कि 'भागीदार-वागीदार नहीं रखेंगे' तो पूरे दिन कलह होती। हम तो ऐसा सब जानते हैं न कि पेच किस तरफ से खोलने हैं। तो ऐसा हुआ था। मैंने सोचा, 'हम इसके साथ कहाँ झंझट करें ?' भतीजा था इसलिए मन में ऐसा भाव था कि कहीं सेट कर
मैंने मन में तय तो किया था कि इसे किसी लाइन में लगा हूँ। इसलिए फिर मन में ऐसा था कि एक-दो हज़ार रुपए खर्च करके उसे कोई छोटी सी दुकान लगवा दूं। मन में ऐसा भाव था क्योंकि भतीजे के साथ चाहे कुछ भी हुआ हो फिर भी वह तो खुद के पेट में दुःखने जैसा ही कहा जाएगा। कहाँ पट्टी बाँधे, अगर भतीजा ऐसा कहे तो? तब फिर मैंने कहा, 'यहाँ दुकान लगवा दें'। तब उसने पूछा, 'किस चीज़ की दुकान ?' मैंने कहा, 'अनाज-किराना वगैरह की'। तब उसने कहा, 'तराजू लेकर बैठना पड़ेगा?' मैंने कहा, 'और क्या लेकर बैठोगे?' तब उसने कहा, 'नहीं, तराजू-वराजू मुझे नहीं जमेगा'। लो अब, दूसरी बात के लिए भी मना किया, कितनी तुमाखी (हेकड़ी, घमंड) थी उसमें?
तब फिर मैंने पूछा, 'नौकरी करेगा?' तो उसने कहा, 'हाँ! नौकरी करूँगा'। फिर मैंने सूरसागर पर एक पेट्रोल पंप वाला था, वह अपना परिचित था तो मैंने पेट्रोल पंप वाले से कहा, 'भाई, इसे रख लो। यह लोगों के लिए पेट्रोल भर देगा और लिख देगा'। फिर मैंने उसे कहा, 'मैंने पेट्रोल पंप पर तेरी नौकरी तय की है'। तब उसने कहा, "नहीं, वहाँ तो शिव चाचा के बेटे पेट्रोल लेने आते हैं, तो वे कहेंगे, 'अरे,