________________
314
ज्ञानी पुरुष (भाग-1) का परिचय देता हूँ कि 'ये मेरे मामा के बेटे हैं'। 'तुझे मेरी जो कीमत लगानी हो वह लगाना।' मैं तो सही बात बता देता हूँ।
प्रश्नकर्ता (शंकर भाई) : दादा, पैसे नहीं हैं न हमारे पास, इसलिए। वे पैसे वाले धनवान इंसान हैं और हम गरीब हैं, इसलिए।
दादाश्री : लेकिन दादा तो हैं न आपके पास? प्रश्नकर्ता (शंकर भाई) : वे तो हैं ही!
दादाश्री : आपको कहना चाहिए कि 'मेरे पास दादा हैं। मैं जिंदगी भर उनका उपकार नहीं भूल सकता'।
प्रश्नकर्ता (शंकर भाई) : लेकिन हम दिल से धनवान थे और वे दिल से गरीब।
दादाश्री : उन्होंने कहा, 'यह काम का नहीं है'। मैंने कहा, 'आप सुंदर हैं, इसलिए आप काम के हैं और यह काम का नहीं है'। और उन्होंने ऐसा कहा, 'यह तो पत्थर पैदा हुआ है'। मैंने कहा, 'नहीं है पत्थर'। अभी तुम्हारी बारह महीने की आमदनी क्या है? प्रश्नकर्ता : लगभग चालीस हज़ार तो खेती की आमदनी है।
हमारी देखने की दृष्टि ही अलग है न दादाश्री : (शंकर भाई तरसाली वाले) यहाँ रहते हैं और हुक्का भर देते हैं आराम से। तो जब बाकी सब लोग उन्हें डाँटते हैं तब मैं उनका रक्षण करता हूँ। मैं कहता हूँ, 'उसका नाम भी मत लेना, सब हो जाएगा'। क्या उनका यह हुक्का भरना बेकार जाएगा? हाँ, लेकिन जिसे कुछ नहीं आता, उसका क्या करें? उन्हें ऐसा सब करना नहीं आता, सर्विस करनी नहीं आती। मैं बताता हूँ कि उनकी शादी कैसे हुई? अब उनकी उम्र पैसठ साल की हो गई है तो इसलिए अगर अब वे बताएँगे तो बुरा दिखेगा। बुरा दिखेगा न शंकर भाई ?
प्रश्नकर्ता (शंकर भाई) : नहीं दिखेगा। बिल्कुल बुरा नहीं दिखेगा, दादा।