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[9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे
दादाश्री : परिवर्तन हो जाने की वजह से ही कह रहा था न कल कि 'मैंने तो बहुत दिनों तक दादा की जेब से पैसे निकाले हैं लेकिन उन्होंने मुझे कभी कुछ नहीं कहा'। तो हाँ, परिवर्तन हो जाता है।
इतना करना आ जाएगा तो काम निकल जाएगा
फिर हीरा बा ने सभी चाबियाँ ले ली थीं मुझसे, कहने लगीं आपको सब छल जाते हैं । हमारे भागीदार ने भी चाबियाँ ले लीं। सभी ने चाबियाँ ले लीं।
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प्रश्नकर्ता: दादा, वह सब बात सही है, लेकिन सभी ने आपसे चाबियाँ ले लीं लेकिन उन सभी की चाबियाँ आपने ले लीं । हमारे ताले खोल दिए आपने।
दादाश्री : वे जागृत हैं न ! व्यवहार संभालने का भय है न उन लोगों को । भय है, इसलिए व्यवहार नहीं संभाल सकते ।
प्रश्नकर्ता : हाँ, भय है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है ।
दादाश्री : हाँ, यदि व्यवहार संभालने की शक्ति होती, तो उन्हें व्यवहार संभालना आता, तो वे और किसी जगह पर धोखा नहीं खाते। वे लोग भी धोखा खाते हैं इसलिए यह सिर्फ भय ही है व्यवहार संभालने का। क्या करोगे आप ?
ऐसा है न, यह जो दुनिया चल रही है, वह भ्रांति से चल रही है । सब उल्टे रास्ते पर हैं। यदि आपको सन्मार्ग पर जाना हो और सनातन सुख चाहिए तो यह मार्ग है । लोग जिस रास्ते पर चलते हैं उस रास्ते पर नहीं, उससे कुछ उल्टा चलो। यह बात तो मुझे बचपन से ही समझ में आ गई थी। लेकिन यदि इतना करना आ जाए तो काम निकल जाए, वर्ना फिर भी वह ले तो जाएँगे ही न ?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : नहीं ले जाएँगे क्या ? और क्या हमारे पास उससे ज़्यादा रुपए हैं? और बहुत हुआ तो हमारा बैंक में जमा नहीं हुआ, इतनी ही परेशानी है न !