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ज्ञानी पुरुष (भाग - 1)
I
भैंस रखते थे भादरण में और घर-घर कोदरा के पौधे होते थे, यहाँ त कि उनमें पैर छुप जाएँ। यह सब मैंने देखा है। कोदरी के पौधे भैसें खाती थी। चरवाहे गायें रखते थे, तो उनकी स्त्रियाँ इतने बड़े-बड़े मटके लेकर छाछ लेने आती थीं । वे एक बार बा तरसाली गई हुई थीं और मुझे छाछ बिलोनी पड़ी। मेरी उम्र कम थी लेकिन अंबालाल भी साथसाथ काम करवाने लगते। ऐसा है न, मैं उन जेठ से घूंघट रखती थी। मेरे जीजा लगते थे फिर भी । हम ऊपर काम कर रहे थे तो जब मुझे नीचे जाना था तब वे चौखट पर बैठ जाते थे । फिर अंबालाल भाई को तो गुस्सा आया तो वे लकड़ी लेकर नीचे आए और कहा, 'यहाँ से उठते हो या नहीं ? उठो, जाओ बाहर ! यहाँ बीच में क्या करने बैठे हो ? नहीं तो लकड़ी से मारूँगा'। अंबालाल चौदह-पंद्रह साल के थे। तो फिर वे भाग गए। मुझे संडास जाना होता, बाथरूम जाना होता तब भी उन्हें ईर्ष्या होती थी और वे बीच चौखट बैठ जाते थे । उन दिनों परदे का रिवाज था इसलिए मैं नहीं जा पाती थी । अगर कोई पुरुष बैठा हो तो घूंघट निकालना पड़ता था। और बा कहती थीं, 'तेरे जीजा जी लगते हैं न!' 'वह तो पागल है', बा ऐसा कहती थीं । उससे घूंघट मत निकाल । वह तो ऐसा है कि मार दे। अंबालाल उनके पीछे दौड़े तो अंबालाल के डर से वे भाग गए।
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संसार का मोह नहीं था
प्रश्नकर्ता: आप दादा के बारे में बता रही थीं न कि दादा की शादी करवाने के बाद भी दादा को संसार का मोह नहीं था । हीरा बा दस साल तक पीहर में रही थीं ।
दिवाली बा : मोह नहीं था । वे चौदह साल के थे तब जैसे लोग शादी करते थे उस तरह उनकी भी शादी हुई, लेकिन उन्हें ऐसा कुछ नहीं था। उन्हें खुद को ऐसा नहीं था कि यह मेरी स्त्री है, धर्मपत्नी है और मैं इसका पति हूँ। उन्हें तो मोह ही नहीं था, कपड़ों का भी मोह नहीं था और पत्नी का भी नहीं ।
प्रश्नकर्ता : फिर हीरा बा कितने साल पीहर में रही थीं ?