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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
अंत तक रखा। बहुत ही समझदार और कुछ भी नहीं बोलते थे, और बोलते थे न तब जैसे एक मुरमुरा रखने जितना! उन्होंने भाभी से अपना धर्म छोड़ने का भी आग्रह नहीं किया
दिवाली बा : उन्होंने कभी ऐसा नहीं कहा कि आप स्वामीनारायण धर्म छोड़ दो या हम आत्मज्ञान की बातें करें। हम दोनों बातें भी करते थे लेकिन उस समय उनका इतना प्रचार नहीं था। यानी उनके मन में ऐसा था कि यहाँ पर नियम-धरम अच्छा है इसलिए ठीक है। मेरी कम उम्र थी। उनसे एक साल बड़ी थी। अतः मैं और वे दोनों ज्ञान की बातें करते थे। उनके भाई इन बातों में नहीं पड़ते थे और उनके सामने हम बातें भी नहीं करते थे। मैं डाँटती भी थी और फिर वे भी मुझे बहुत डाँटते थे लेकिन उसके बाद फिर कुछ भी नहीं। आंतरिक लागणी है न वह तो!
शुरू से ही भगवान में रुचि दिवाली बा : हमारा चंद्रकांत, इन सब के बजाय इन पर ज़्यादा प्रेम था कि, दादा तो भगवान जैसे हैं! चंद्रकांत औरों के सामने बातें करते थे कि 'दादा, तो भगवान जैसे हैं'। इस संसार से अलग बातें। इस संसार की बाते नहीं थीं, आत्मा की अर्थात् ज्ञान की। यदि वह होता तो बाकी सब कहते हैं कि दादा इन्हें ज्ञान देने वाले थे लेकिन वह तो कम उम्र में ही एक दिन चला गया (देहांत हो गया)। पहले हमेशा शाम को पाँच बजे गाड़ी लेकर आता था, अलकापुरी से बड़ौदा।
प्रश्नकर्ता : क्या दादा शुरू से ही संसार में अलिप्त रहते थे?
दिवाली बा : शुरू से ही किसी भी प्रकार के काम में उनका चित्त ही नहीं रहता था। 'कुछ काम करना है' ऐसा रहता था फिर करते भी थे। फिर शाम को पाँच बजे आते थे। इसमें बिल्कुल भी ध्यान ही नहीं था, व्यापार में नहीं, और संसार के अन्य किसी व्यवहार में नहीं। शुरू से ऐसा ही था।
नीरू माँ : कहते हैं, शुरू से ही व्यापार में या व्यवहार में किसी चीज़ में ध्यान नहीं था। बस, वे तो भगवान में ही रहते थे।