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[9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे
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क्या है ? तू क्या समझ गया?' मैंने कहा, 'आप कहीं पर जाने के लिए आए हो?' तब कहा, 'मेरा इंजन बिगड़ गया है इसलिए मुझे मुंबई जाना ही पड़ेगा न?' बा के सामने मैंने कहा, 'मैं कहाँ मना कर रहा हूँ? लेकिन इस बुढ़ापे पर धूल गिरेगी'। उम्र से बुजुर्ग, वृद्ध इंसान, कुटुंब में माननीय, इतनी उम्र थी फिर भी ऐसा कहा। बा भी परेशान हो गईं कि 'यह क्या कह रहा है, अंबालाल!' तब उन्होंने मुझसे कहा, 'ले फिर, रहने दी यह पोटली। अभी वापस वहाँ बारात में जाऊँगा'। लेकिन बाद में गए थे वहाँ पर।
ऐसे थे हमारे सब भाई! नहीं, लेकिन कितने सख्त शब्द कहे थे! वह सब काम का नहीं है न! ऐसा होने के बाद मतभेद बढ़ जाता है न! और फिर मतभेद का इलाज करने जाए, तब फज़ीता हो जाता है। वह भी आश्चर्य है लेकिन, वे कहते हैं, 'यह पोटली रहने दी। ले, कल सुबह मैं वहाँ पर जाऊँगा। क्या अब तुझे कोई आपत्ति है ?' मैंने कहा, 'नहीं, तब तो कोई आपत्ति नहीं है। वे वहाँ पर गए। यों हम डाँटते भी थे।
हमारे चचेरे भाईयों के यहाँ शादी ब्याह होते थे, तब वे क्या करते थे? खाना खाते समय उनका पीढ़ा मेरे साथ रखते थे। रावजी भाई सेठ ने सभी से कह दिया था कि, 'मेरे भाई का पीढ़ा मेरे साथ रहेगा'। अंत तक मर्यादा का बहुत ध्यान रखा। छोटा था न, मैं सब का छोटा भाई लगता था। मेरे सात-आठ चचेरे भाई थे। भाभियाँ भी बहुत देखी थीं, उन सब ने भी छोटा देवर, प्यारा-प्यारा करके बहुत लाड़ से पाला था मुझे। इस तरह बड़ा किया था इसलिए मिज़ाज भर गया था, उसका पावर था अंदर, पावर! तो हेडेक हो जाए ऐसी भाषा थी! कैसी? लेकिन देखो अब भाषा सुधर गई है न?
भगवान (ज्ञान) के हाज़िर होने के बाद यह भाषा सुधर गई है। बाकी सब प्रकार से बहुत समझदार थे। पहले भगवान नहीं बने थे (ज्ञान नहीं था) तब भी समझदार थे लेकिन भाषा ऐसी थी कि हेडेक हो जाए। सिर दुःख जाए ऐसी भाषा थी।