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[8.4] भाभी के उच्च प्राकृत गुण
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रखी थी सब की सेवा। तब मैंने कहा कि 'मेरी सेवा लाल कपड़े में है
और ये सभी लोग जानते थे कि यह दिवाली बा की है'। फिर वे चंद्रकांत की गाड़ी लेकर गए और मेरी पूजा लेकर आए। मैंने जिस कमरे में बताया था उस अनुसार वहाँ से लेकर आ गए, तब मुझे शांति हुई। बहुत शांति, कितना था उन्हें!
तो 'तब फिर उपवास कर लेना' ऐसा कहा और जाने का तो उन्होंने पक्का कर ही लिया था लेकिन मुझे तो ऐसा कहा।
नीरू माँ : आपको परेशान करते थे, आप भाभी थीं न? आपका भी फिर ऐसा ही था न, बराबरी का हिसाब था न, देवर-भाभी का!
दिवाली बा : हाँ, फिर लेकर आए। उन्हें मेरे लिए कितना था! उनका वह सब तो मुझे अभी भी बहुत याद आता है। उनकी डाँट भी याद आती है, लेकिन फिर मुझे गुस्सा नहीं था। मुझे जिस प्रकार से कुदरती भाव होते हैं न, उस प्रकार से उनके बारे में भाव रहता है।
महाराज, मेरे अंबालाल को कुछ नहीं होगा प्रश्नकर्ता : बा, आपको दादा के प्रति बहुत भाव है?
दिवाली बा : बहुत। सयाजीराव थे उस समय शुरुआत में बड़ौदा में जब जातीय झगडे हए थे और वे सब्जी लेने गए थे मार्केट में और बहुत समय बीतने पर भी नहीं आए। हमारी जोगीदास विठ्ठल की पोल (मुहल्ले) के सामने तो बहुत लोग इकट्ठे हो गए थे। मैंने कहा, 'हमारे अंबालाल बाहर मार्केट में गए हैं'। तो मैं तो घबरा गई। तब फिर भगवान कृष्ण की एक मूर्ति रखी हुई थी। भगवान से कहा, 'महाराज, हमारे अंबालाल को आने-जाने में मार्केट-वार्केट में अगर उन्हें पता नहीं है और अगर वे किसी की लपेट में आ जाएँ तो मेरे अंबालाल को कुछ भी नहीं होना चाहिए!' मुझे ऐसा हो रहा था। फिर घर पर आ गए। वे किसी की भी चुंगल में नहीं फँसते थे। वे तो ऐसे थे कि कहीं भी छुप जाएँ! मुझे सब पता है न! ऐसे थे वे तो। उन्होंने वैसा ही भाव और प्रेम