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[9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे
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देखते हैं न, न्यूज़ पेपर में आता है रोज़, दादा भगवान । तो हमारा ब्लड एक ही है न, तो उनसे सहन नहीं होता इसलिए आखिर तक स्पर्धा । इंसान स्पर्धा में से बाहर निकल जाए तो उसका बहुत काम हो जाए।
मुझसे स्पर्धा करो और आगे आओ प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, स्पर्धा डेवेलपमेन्ट की स्टेज तो है न?
दादाश्री : है। डेवेलपमेन्ट होता है। लेकिन डेवेलपमेन्ट कब होता है? जब स्पर्धा में सामने वाले की शक्तियों को दबाएँ नहीं और उसकी शक्तियाँ बढ़ रही हों तो बढ़ने दें। ये सभी स्पर्धा वाले तो क्या करते हैं? खुद आगे बढ़ने के लिए सामने वाले की शक्तियों को फ्रेक्चर कर देते हैं। लेकिन मैंने तो बचपन से ही एक नियम रखा था कि मैं अपने भतीजे, आसपास के सर्कल वालों से, सभी से कह देता था कि आपको जितनी ज़रूरत हो उतनी हेल्प करूँगा, व्यवहार में ही तो। तब यह ज्ञान नहीं था। व्यवहार में तो सभी को स्पर्धा रहती ही है न! सभी भतीजों से मैंने कह दिया था कि, 'आपको जो चाहे वह दूँगा लेकिन मेरे साथ स्पर्धा करो
और मैं यहाँ तक भी देखने के लिए तैयार हूँ कि आप आगे आकर अपने सींग से मुझे मारो, लेकिन मज़बूत बनो। आपके सींग बढ़ जाएँ और उन सींगों से मुझे मारोगे तो भी मुझे हर्ज नहीं है लेकिन आप सींग वाले बनो। यानी कि ऐसे शक्तिशाली बनो। पीछे मत हटना'। मैंने ऐसी छूट दी थी सभी को। पीछे रहने के बजाय वे आगे बढ़ें तो अच्छा है। पीछे रहेगा तो हमें झंझट करनी पड़ेगी। अपने आप ही बढ़े तो अच्छा है न?
प्रश्नकर्ता : हाँ, दादा।
दादाश्री : जबकि लोग तो पीछे धकेलने के तरीके खोजते रहते हैं। मैंने क्या कहा था कि आई विल हेल्प यू। मैंने पूरी जिंदगी ऐसा ही रखा। सामने वाले की जिस शक्ति की प्रशंसा करते हैं, वह खुद
को प्राप्त होती है प्रश्नकर्ता : मुझ में भी ऐसा कहने की शक्ति आएगी?