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[9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे
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अगर बाहर वाला कोई कुछ कहे तो सहन नहीं होता था
अगर कोई (हमारे लिए) ज़रा सा भी टेढ़ा बोल दे न, तो हमारे भतीजे उससे लड़ने लग जाते थे, 'मेरे चाचा का नाम लिया? जानता है, मेरे चाचा कौन हैं?' अरे, यों तो मेरे साथ खदबद करते जाते हैं। एक ही खून था न! खून खौल उठता था।
प्रश्नकर्ता : दादा, ऐसा क्यों होता है ? क्या खून का रिश्ता ऐसा करवाता है?
दादाश्री : खून का रिश्ता ऐसा ही होता है हमेशा।
प्रश्नकर्ता : दो भाई या दो बहन चाहे कितना भी एक-दूसरे को धिक्कारें लेकिन अगर कोई तीसरा कुछ कहे तो सहन नहीं होता।
दादाश्री : ब्लड रिलेशन में क्षण भर में एकदम राग हो जाता है लेकिन समानता नहीं रहती। बाहर समानता रहती है, एकदम राग भी नहीं और द्वेष भी नहीं। ये तो घड़ी भर में कहते हैं कि, 'आपके बगैर मुझे अच्छा नहीं लगता'। और फिर घड़ी भर में कहते हैं, 'तुझे देखते ही मुझे चिढ़ मचती है। ऐसे हैं ये राग-द्वेष । ब्लड रिलेशन का काम ही ऐसा है।
हम लड़ रहे हैं, उसमें आप बीच में पड़ने वाले कौन? अगर तीसरा कोई बोले तो उससे झगड़ा करने जाते। यह सब देखने जैसा है। अगर दो लोग अंदर-अंदर लड़ रहे हों और उन्हें हटाना हो न तो ऐसा तरीका अपनाता हूँ, तब उनका लड़ना बंद हो जाता है और वे तीसरे से लड़ने लग जाते। वहाँ उन दोनों के बीच की लड़ाई तो रुक गई। मैं गाड़ी दूसरी पटरी पर चढ़ा देता था।
___ यह गाड़ी इस पटरी पर चलाने के बजाय उस पटरी पर चली तो चली गाड़ी। हमने लोगों से कहा कि, 'मेरी गाड़ी को अब कोई दूसरी पटरी पर मत ले जाना'। मैं तो हमेशा जागृत हूँ इसलिए मैं पूछता हूँ कि 'पटरी बदलने आया है?'