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[9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे
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तो... तो फिर वापस मन में ऐसा होता है कि बहुत रोटर (नालायक) इंसान है यह। यानी कि रिलेशन में तो सब ऐसा ही है! हम भी ऐसा ही करते थे बचपन में।
सभी का ऐसा ही स्वभाव था। ये सब चाचा के बेटे एकदम तेज़ स्वभाव वाले, पाँच मिनट में झगड़ पड़ते और दस मिनट में वापस साथ में खाने बैठ जाते हैं!
प्रश्नकर्ता : आज ऐसा कह रहे थे कि 'बाहर झगड़ा करते हैं लेकिन फिर घर आकर कुछ भी नहीं।
दादाश्री : उसी क्षण, तुरंत ही आइस्क्रीम खाने बैठ जाते हैं। सारा झगड़ा-वगड़ा, 'तुझे कौन पूछता है' ऐसा कहते हैं!
अंदर से साफ। थोड़ी देर बाद कुछ भी नहीं। लेकिन भारी लड़ाकू। कोई तो ऐसा समझे कि 'अब यह घर टूट गया। पच्चीस साल में भी एक नहीं हो पाएँगे ये लोग'। लेकिन जब वह वापस आता था तब उसके साथ बैठकर खाना खाते थे तो वह व्यक्ति भी सोच में पड़ जाता कि 'किस तरह के लोग हैं ये!' बहुत कम लोग ऐसे होते हैं।
प्रश्नकर्ता : मैं उसके मुँह पर ही कह देता हूँ, वह भी मुझे मुँह पर कह देता है। पीछे से कुछ भी नहीं।
दादाश्री : हाँ! कपट नहीं। वर्ना मन टूट जाता है, इसमें मन नहीं टूटता।
प्रश्नकर्ता : कपट वाला हो तो मन टूट जाता है ?
दादाश्री : टूट जाता है। यह तो साफ, प्योर। सिर्फ अहंकार ही बहुत भारी।
प्रश्नकर्ता : लेकिन जो कपट वाला होता है वह झगड़ा नहीं करता। झगड़े को समेट लेता है।
दादाश्री : नहीं करता, लेकिन यदि हो जाए तो उसका क्या करे?