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[8.4] भाभी के उच्च प्राकृत गुण टखना भी दिखाई नहीं देता था और साड़ी पर धूल भी नहीं
लगती थी दादाश्री : हमारे भादरण के लोग मुझे वहाँ बड़ौदा में कहने आते थे। कभी आते थे तो मुझसे क्या कहते थे कि 'आपकी भाभी के बारे में तो कहना पडेगा!' तब मैंने पूछा, 'क्या?' तब कहा, 'आपकी भाभी जब बाहर निकलती हैं गाँव में, मंदिर-वंदिर जाने, तब उस समय उनके पैर का टखना तक किसी ने नहीं देखा'। तो वह रौब ही है न, एक तरह का! कितना कैल्कुलेशन है! वर्ना इतने-इतने पैर खुले दिखाई देते हैं! और यदि साड़ी घिसटती रहे तो धूल भरी हो जाती है! 'ये तो, जैसे क्षत्राणी ही चल रही हो न', ऐसा दिखाई देता था।
जब भादरण के लोग ऐसा कहते थे न, तब मुझे गर्व होता था। यही संस्कार हैं न! तब मेरे मन में न जाने क्या से क्या हो जाता था! मुझे गर्व होता था। मेरी भाभी का देखो, कितना अच्छा है! तो उस गर्व की वजह से मार खाई। तब ज्ञान नहीं हुआ था। अब तो कुछ भी नहीं होता। अब तो मुझे, ऐसा कुछ रहा ही नहीं न कि मेरी भाभी है!
भाभी का चरित्र उच्च इसलिए दादा को अहोभाव
मैं जानता था कि हमारे घर में पूरी पीढ़ी अलग ही तरह की थी। हीरा बा ने कभी शिकायत नहीं आने दी और इन्होंने (भाभी ने) भी कभी शिकायत नहीं आने दी। कोई शिकायत नहीं करता था और कोई शंका नहीं, ऐसी लाइफ थी पूरी। कोई ऐसा नहीं कह सकता था कि, 'आपके चरित्र में ऐसा है!' मेरे लिए तो यही सब स्वर्ण जैसा था।
प्रश्नकर्ता : बस। वही जायदाद।
दादाश्री : बस। वही मेरी जायदाद थी। मुझे वही आनंद रहता था। उसमें चरित्र की बहुत कीमत थी।
प्रश्नकर्ता : चरित्र की बहुत कीमत ! दादाश्री : भाभी चाहे अन्य प्रकार से मुझे कड़वे ज़हर जैसी लगती