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[8.1] भाभी के साथ कर्मों का हिसाब
फिर घर पर ब्रदर को लिखा कि 'मैं रूठा नहीं हूँ, भाग नहीं गया हूँ और चला भी नहीं गया हूँ, और फिर मुझे आपकी तरफ से कोई दुःख भी नहीं है लेकिन मेरी ऐसी इच्छा है या फिर शायद मेरा प्रारब्ध बदला है। मैं अब अहमदाबाद जाकर कुछ करूँगा। मैं भाग नहीं रहा हूँ, लेकिन मेरी इच्छा है कि अब मुझे अहमदाबाद में स्टेडी (स्थिर) होना है, मुझे कोई बिज़नेस करना है । अतः मेरी चिंता मत करना, मुझे ढूँढना भी मत' । अहमदाबाद जा रहा हूँ इतना लिखा, किसके यहाँ जा रहा हूँ ऐसा नहीं लिखा। ‘मैं अहमदाबाद में हूँ, इसलिए आप मुझे खोजना मत' ऐसी चिट्ठी लिख दी।
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प्रश्नकर्ता : तो उस समय गुस्सा नहीं था । आपने ही पोस्टकार्ड लिखा न ?
दादाश्री : हाँ, वहाँ पर पोस्टकार्ड लिखा ।
प्रश्नकर्ता : यह पूरा सूझ वाला काम है।
दादाश्री : पोस्टकार्ड लिख दिया तो अगले दिन वहाँ सभी को शांति हो गई, वर्ना घबराहट हो जाती सभी को, मूर्ख कहलाते हम। वह तो ऐसा था कि भाई का ओजस (ताप) मुझसे सहन नहीं होता था इसलिए उनसे आमने-सामने नहीं कह सका । वर्ना उन्हें कहकर निकलता लेकिन उनके सामने कहने में तो घबरा जाता। उनका ओजस ही ऐसा था । इसलिए बाद में चिट्ठी लिखनी पड़ी। फिर बैठ गया गाड़ी में ।
पुण्यशाली इसलिए चाय के समय पर चाय मिल गई
अब आणंद स्टेशन पर उतरा तो एक परिचित मिल गए। मुझसे कहा, 'कहाँ जाने की तैयारी है ?' मैंने कहा, 'अहमदाबाद की'। तो उन्होंने कहा, ‘आइए, पधारिए । बिना चाय - वाय पीए नहीं जा सकते आप। चाय पीकर जाओ'। मैंने कहा, 'चलो, चलते हैं । चाय-वाय पीते हैं। ज़रूरत थी और वैद्य ने कहा ' ।
आणंद स्टेशन पर पाँच-सात परिचित मित्र मिल गए। सभी चाय