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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
तो, देखने जैसा ही है। ये तो अभी चाय पीएँगी। आप बैठो न! यहाँ बैठते हैं हम, फिर थोड़ी देर बाद चाय-वाय पीते हैं। उनके मन में खुशी है न, तो वे कूद लें, फिर बाद में हम चाय पीते हैं'। मैंने ज़ोर से कहा। वे सुन लें इस प्रकार से। 'देखो न, ये कितना आनंद भरा नाच है! यह नाच तो देखो! कितना कूद रही हैं ! आनंद करने जैसा है, इसमें आप घबरा क्यों गए?' तो फिर भाभी ने बंद कर दिया, वे भी घबरा गईं।
भाभी तुरंत ही बोल उठीं, 'आपने मुझे कभी भी चैन से नहीं बैठने दिया। इसे नाच कह रहे हो आप? अभी भी इसे कसरत कह रहे हो?' तब मैंने कहा, 'तो क्या आप इससे शक्ति बढ़ा रही हो? त्रागा करना है क्या मेरे सामने?' फिर मुझसे कहा, 'बैठो, बैठो, आपका सब देख लिया!' मैंने कहा, 'अच्छा है ! मैंने आपको देख लिया और आपने मुझे देख लिया।
उन्होंने रावजी भाई को डरा दिया, उसे त्रागा कहते हैं। त्रागा यानी सामने वाले को डरा देना। करना नहीं आता लेकिन मैं पहचान लेता हूँ त्रागा को
ज्ञानी तो अभी बने हैं। बाकी, पहले अहंकार तो था ही न! तब मैं कहता था कि 'सिर पटको न, देखते हैं ! सिर फोड़ो, चलो! मुझे डराना चाह रही हो? पूरी दुनिया को डराकर, मैं इस पर बैठा हूँ!'
त्रागा से मुझे बैर है। बहुत त्रागे वाला इंसान तो हमें आगे ही नहीं बढ़ने देगा। त्रागा करने का मतलब है बहुत ज़्यादा दवाब डालना। मुझे नहीं आता, हमारी अक्ल वहाँ तक नहीं पहुँच सकती। इसमें बहुत अक्ल की ज़रूरत है। कोई अगर त्रागा कर रहा हो तो उसे ढूँढ ज़रूर निकालता हूँ लेकिन त्रागा करना नहीं आता। त्रागे वाले इंसान से तो मुझे बहुत चिढ़ मचती है।
पूरी दुनिया का त्रागा उतारूँ, ऐसा जादूगर हूँ पूरी दुनिया में किसी का त्रागा नहीं चलाऊँगा, ऐसा हूँ मैं। पूरी