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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
ही नहीं जीत सकी तो ऐसी कोई घटना हुई है जहाँ आपकी बुद्धिकला से उनकी बोलती बंद हो गई हो?
दादाश्री : एक बार हमारे घर पर एक बिल्ली अपने दो बच्चों को उठाकर ले आई। छोटे-छोटे दो बच्चे रख दिए। फिर वे धीरे-धीरे आने लगे। ज्ञान होने से पहले मैं बच्चों में फँस गया था, क्योंकि दया थी न! लेकिन फिर से क्यों फँसूं?
प्रश्नकर्ता : बिल्ली के बच्चों को पाला था?
दादाश्री : मुझे पालने की इच्छा नहीं थी, लेकिन पीते-पीते चाय गिर गई थी तो वह लपक-लपककर आई तो मैंने दूध भी डलवाया। छोटे-छोटे बच्चे घूमते-घूमते आ जाते थे तो मैं ज़रा दूध रख देता था। मेरे मन में ऐसा था कि बेचारे भूखे मर जाएँगे! ओहोहो! ये आए दुनिया के पालनहार! कौन आए?
प्रश्नकर्ता : उनके पालनहार आए।
दादाश्री : हाँ, दुनिया के पालनहार आए! बेचारे भूखे मर जाएँगे! मैंने कहा, 'इस तरह कोई नहीं मरता। अरे भाई! यह तेरी ही दखल है'।
फिर तो उनकी आदत हो गई। एक बार आए तो आदत सी हो जाती है तो फिर पास में ही बैठे रहते थे और फिर तो बहुत ही पास में आने लगे। फिर तो हटते ही नहीं थे न! फँस गए भाई, फँस गए! तो इस तरह करते-करते वे बड़े हो गए और बहुत समझदार हो गए। मैं जब भी घर आता था तब बिल्ली इंतज़ार करके बैठी रहती थी कि 'भाई, अभी आएँगे'। ग्यारह बजे, साढ़े ग्यारह बजे, साढ़े बारह-एक बजे तक, अगर देर हो जाती तब भी वहाँ दरवाज़े पर आकर बैठी रहती थी, यों करके बैठी रहती थी।
___ मैं जब आता था तो फिर वह मुझे देखते ही तुरंत वहीं से मेरे पीछे चलने लगती थी।
प्रश्नकर्ता : कोई ऋणानुबंध होगा तभी तो न?