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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
ज्ञान के बाद लेट गो करके निभाया भाभी को
हमारी भाभी सभी को छलती थीं। मुझे भी छलती थीं न! वह उनका बहुत ही पक्का काम-काज था! तो कितने कपट, ज़बरदस्त कपट के पर्दे थे! वे कितने बड़े होंगे! उसे 'स्त्री चरित्र' कहा गया है।
प्रश्नकर्ता : जब कभी आपकी भाभी आपके सामने कपट करती थीं तो आप उनके सामने सख्ती से रहते थे?
दादाश्री : यदि सख्ती से रहता तो वह फिर मेरा तेल निकाल देतीं। मैं तो लेट गो करता था, समझा-बुझाकर निपटाता था। फिर ज़रा ज्यादा कपट कर रही होती तो मैं सब के सामने कह देता था कि, 'हमारी भाभी की वजह से घर बना है, वर्ना घर कैसे बन पाता?' तो फिर वे वापस शांत हो जातीं।
प्रश्नकर्ता : तब तो और ज़्यादा चढ़ जातीं।
दादाश्री : भले ही चढ़ जाएँ लेकिन उस समय तो वे शांत हो जाती थीं। फिर जब चढ़ जाएँगी तब मैं एक ऐसी करारी दूँगा कि सीधा कर दूंगा। लेकिन अभी तो गाड़ी राह पर आ गई न!
प्रश्नकर्ता : ऐसा जो कहा न, कि भाभी के साथ आप बहुत सख्ती से रहते हैं, तो वह क्या है?
दादाश्री : सख्ती रखता ही हूँ मैं उनके सामने। इनसे कहता था कि देने ज़रूर हैं, लेकिन अगर वे दो हज़ार कहें तो एक हज़ार देना है। फिर भले ही बाद में हमें दो हज़ार देने पड़ें, या उससे ज़्यादा देने पड़ें लेकिन हमें हज़ार ही कहना है। अगर वे कहें कि, 'नहीं, नहीं, ज़रा तो बढ़ाइए'। तो ऐसा कर-करके बढ़वाती थीं। अभी (स्वामीनारायण) मंदिर में खाना खिलाना था, महाराज वगैरह सभी को तो उन्होंने मुझसे कहा कि 'आप पैसे देंगे? संतों को खाना खिलाना है'। तब मैंने कहा, 'मैं हाँ कहूँगा लेकिन पहले से रकम तय कर दो तो हाँ कहूँगा। मुझे आप बजट बताओ तो दूंगा, वर्ना नहीं दूंगा। आप जो बजट कहोगी, वह दूंगा'। यह उदाहरण दे रहा हूँ। उन्होंने बारह सौ का बजट बताया।