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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
दादाश्री : मैंने शुरू से ऐसा ही रखा है कि वे क्लेम नहीं रखें। मैं तो बहुत ही सतर्क इंसान हूँ न, तो कोई बीच में हाथ नहीं डालता
था कि, 'दिवाली बा के साथ न्याय करना है'। मैंने न्याय करने जैसा रखा ही नहीं न कुछ भी, बल्कि हेल्प करने का रखा है। अन्य कोई भी झंझट नहीं थी मेरे और उनके बीच में।
प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : फिर मुझे जो देना होता था, वह मैं दे देता था। प्रश्नकर्ता : दे देते हैं, वह ठीक है।
दादाश्री : फिर मैंने उनसे कह दिया कि 'और भी कुछ चाहिए? इससे ज्यादा भी कुछ चाहिए?' अंत में उन्होंने कहा कि, 'नहीं भाई, अब मुझे नहीं चाहिए'। ऐसा तो बहुत अच्छा आता है! इतना है कि मुझ पर राग-द्वेष नहीं है उन्हें।
धोखा खाकर भी किसी का क्लेम बाकी नहीं रखा
उनके भाई (दिवाली बा के भाई) खुद ही कह देते थे न कि, 'आपका उनके प्रति कुछ भी बाकी नहीं है। वे आपको कुछ भी नहीं कह सकतीं। उनकी ओर से कोई शिकायत करने नहीं आ सकता। क्योंकि मैं हमेशा एक चीज़ रखता था कि आपके और मेरे बीच में अगर कोई झंझट हो जाए और अगर मेरे दस हज़ार आपके पास रहें तो भी मुझे आपत्ति नहीं है लेकिन आपके पाँच हज़ार मेरे पास आ जाएँ तो उसमें आपत्ति थी। वह क्यों? क्योंकि फिर आप बुलाओगे आर्बिट्रेटर को और आर्बिट्रेटर मेरे यहाँ आएगा कि बहीखाते देखने हैं। तब मैं कहूँगा कि 'भाई, साढ़े बारह तो हो चुके हैं, कल आना'। लेकिन ऐसा चलता नहीं है न! आर्बिट्रेटर को उपकारी माना जाता है। लेकिन मैंने कोई क्लेम नहीं रखा था, वर्ना आर्बिट्रेटर मेरे यहाँ आते। और मैं तो आर्बिट्रेटर को निकाल ही देता तुरंत। फिर आर्बिट्रेटर आकर कहेगा, 'चाय बनाइए'। तो फिर हमें चाय बनानी पड़ेगी या नहीं? मैं आर्बिट्रेटर बना हूँ लेकिन मैंने कभी भी ऐसा व्यवहार नहीं किया। बल्कि अपने घर पर चाय पिलाता हूँ उन्हें।