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[8.1] भाभी के साथ कर्मों का हिसाब
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दादाश्री : हाँ, होगा तभी तो न! वह सोचती थी कि 'अब खानेपीने का मिलेगा'। तो इतना अधिक फँस गया था। उसके बाद हमारी भाभी आईं न, वे ज़रा तेज़ स्वभाव वाली थीं और स्वामीनारायण धर्म का पालन करती थीं। उनमें तो कुत्ते-बिल्ली को छूते भी नहीं थे, तो मैं जब बाहर गया होता था न, तब भाभी बिल्ली को अच्छी तरह मारती थीं क्योंकि यदि उन्हें छू जाए तो वे खाना नहीं खा सकती थीं न ! इसलिए उन्हें निकालने के लिए मारती थीं। 'यह रांड चली जाए न, तो इन भाई से जो लफड़ा चिपका है वह छूट जाएगा!' ऐसा कहती थीं।
हीरा बा : लेकिन उन्हें तो काट लिया था न! दादाश्री : ऐसा? उन्हें ? हीरा बा : हाँ, तभी तो।
दादाश्री : तब तो फिर वह ऐसा ही करती न! उन्हें दाँत दिखातीं तब तो फिर वे काटती ही न! दाँत दिखाने चाहिए क्या? ये जो बंदर होते हैं, वे दाँत निकालते रहते हैं, आपने नहीं देखा? हमारी भाभी तो दाँत निकालकर दम निकाल देती थीं। वह भी मर्यादा धर्म के लिए। अरे! भला इसे धर्म कैसे कहेंगे? आपको काटा था कभी भी?
हीरा बा : नहीं, मुझे नहीं।
दादाश्री : इसलिए फिर बा ने मुझसे एक बार कहा कि, 'इस बिल्ली को तू यहाँ पर खाना खिलाता है और वह मारती है'। तब मैंने उसका तरीका ढूँढ निकाला ताकि वे बिल्ली को न मारें। मैंने उनसे कहा, 'बिल्ली को क्यों मारती हो? क्या पता, अगर ये हमारे मणि भाई ही आए हों तो आप क्या करोगी? वर्ना मैं क्या किसी को दूध पिलाता रहूँगा? मैं क्यों दूध पिला रहा हूँ ? शायद भाई आए होंगे, कौन जाने कि 'ये मेरे भाई ही आए हैं !' तो पूछा, 'आ सकते हैं ?' तब मैंने कहा, 'हाँ, देखना! आते हैं और सत्संग में जाते हैं। चुकाने के लिए फिर से आएँगे या नहीं आएँगे?' उसके बाद फिर चुप, फिर नहीं मारती थीं।