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[8.2] भाभी को उपकारी माना
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__ मेरे लिए भी हितकारी बनीं भाभी
इसलिए मुझे तो याद आता था, मुझे तो क्या करना पड़ता था? रात को उठकर मैं सोचता था। मैं बीस-बाईस साल की उम्र में क्या कहता था कि 'नरसिंह मेहता को उनकी भाभी ने एक वचन कहा, तो मेहता को आग लग गई। तो मुझे जब इन भाभी ने वचन कहा, तो उससे मुझे भी आग लगा करती थी। तब मैंने कहा, 'हम एक जैसे ही हैं, नरसिंह मेहता और हम'।
इस प्रकार मुझे उनसे यह हेल्प मिली थी। भाभी ने क्या हेल्प की? वे जब ऐसा करती थीं तो उसका रिएक्शन आता था। तो रात को मन में सोचता था कि नरसिंह मेहता की भाभी उनके लिए हितकरी रही, मेरे लिए भी हितकारी हैं। उसका सही उपयोग करूँगा तो काम निकल जाएगा न! हमें रास्ता मिला हैं, लाभ उठाना हो तो उठा सकता हूँ, वर्ना मोह मार्ग पर चले जाते, न जाने मोह में कहाँ ठोकरें खाते रहते! लेकिन वास्तव में उन्होंने इस तरह लालबत्ती ही दिखा दी! इतना तो अच्छा हुआ न, मुझे बहुत आनंद हुआ। मुझे भी भाभी काम में आईं ! तो उस वजह से हम सुधर गए, वर्ना सुधरते ही नहीं न!
वे मेरे मोह को तोड़ ही देती थीं। वे खुद मेरे मोह को तोड़ने के लिए ऐसा नहीं करती थीं। उनका हेतु तो यह था कि मुझे सुखी नहीं होने देना है। मैं बहुत पंप मारता था, फिर भी मोह उत्पन्न नहीं होता था। क्योंकि जहाँ अहंकार है वहाँ मोह खड़ा नहीं रहता और ऐसा अहंकार जो हर प्रकार से चढ़ बैठा था।
ज्ञानी बनने में निमित्त भाभी __ मैं उनसे कहता भी हूँ कि, 'आपके प्रताप से ही मैं यह बना हूँ। मैंने उनसे ऐसा भी कहा है कि नरसिंह मेहता को उनकी भाभी मिली थीं तो वे बड़े भगत बने और आप मुझे मिले तो मैं भगवान बन जाऊँगा! मुझे ये भाभी मिली हैं तो मुझे मोक्ष में जाने का रास्ता मिल गया।
प्रश्नकर्ता : और वास्तव में आप बन गए दादा भगवान !