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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
प्रश्नकर्ता : दादा, इसका क्या कारण रहा होगा? दादाश्री : ऋणानुबंध। प्रश्नकर्ता : इसलिए भाभी अपमान करती रहती थीं?
दादाश्री : हाँ, भाभी बहुत अपमान करती थीं। भाभी ने तो तेल निकाल दिया था। भाई भी अपमान करते थे, वे तो समझो कि बड़े भाई
थे इसलिए हम उनका बुरा नहीं मानते थे, लेकिन भाभी तो जब से आईं तब से अपमान ही देती रहीं। हमारी भाभी ने हमारा अहंकार उतार दिया।
प्रश्नकर्ता : उस समय बहुत मुश्किल लगता होगा, दादा?
दादाश्री : बहुत मुश्किल। लगती थीं दुश्मन लेकिन समझ में आ जाए तो काम करें
मित्र जैसा प्रश्नकर्ता : यों बहुत ही मुश्किल था, दादा।
दादाश्री : मेरे वे जो दस साल बीते न, वैसे तो किसी के भी नहीं बीते होंगे। मेरे वे जो दस साल बीते तो उसमें जन्मोजन्म का इकट्ठा करें न, तो भी उसकी बराबरी न हो इतना ग़ज़ब का बीता है। मेरी आपबीती की आप कल्पना भी नहीं कर सकते। भाभी ने दुःख देने में कुछ भी बाकी नहीं रखा था! इसमें उनका दोष नहीं है हिसाब तो मेरा ही है न! इस जगत् में किसी की भी नोंध (बैर सहित नोट करना) करने जैसा नहीं है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन कई बार दुश्मन भी मित्र का काम कर देता है।
दादाश्री : हमेशा मित्र ही होते हैं लेकिन समझ में नहीं आता। मुझे ऐसा लगता है कि मेरी ही कितनी गलतियाँ होंगी। लेकिन उन दिनों तो ऐसा लगता ही नहीं था न! उन दिनों तो ऐसा ही लगता था न, कि वे ही गलत हैं। उन दिनों कम उम्र में तो ऐसा ही लगता न, कि वे मुझे दुःख दे रही हैं इसलिए मैं कहता था कि 'जिस तरह नरसिंह मेहता को उनके बराबरी के मिले थे, वैसे ही मुझे ये मिल गईं !'