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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
दादाश्री : हाँ! लेकिन वह निमित्त ऐसा था। निमित्त ही थीं न? निमित्त ही कहलाएँगी न?
प्रश्नकर्ता : हाँ, निमित्त।
दादाश्री : वैराग्य लाने वाली निमित्त बनीं, मेरा तो हालांकि यह सब होना ही था, लेकिन निमित्त वे बनीं। जब यह ज्ञान हुआ न, तब भाभी से मैंने कहा भी कि 'आपके अच्छे व्यवहार की वजह से मुझे यह ज्ञान हुआ है। आपने मुझे दुनिया दिखाई'।
प्रश्नकर्ता : जय सच्चिदानंद।
दादाश्री : ये भाभी मुझे मोक्ष में ले जाने में हेल्प करेंगी। दुःख होगा तभी अंदर से तैयारी होगी न? मैंने कहा, 'इन भाभी ने मुझे सिखाया। डाँटा लेकिन सिखाया है काफी कुछ'।
प्रश्नकर्ता : दादा, उनका उपकार है।
दादाश्री : हाँ, मानना तो पड़ेगा। अभी उनका उपकार मानता हूँ कि उन्होंने मुझे इस रास्ते पर आने में हेल्प की।
प्रश्नकर्ता : भाभी ने आपको इस तरफ मोड़ा।
दादाश्री : हाँ, अनंत जन्मों से इस (संसार) तरफ था तो उन्होंने (मोक्ष की तरफ) मोड़ा। यहाँ (संसार में) क्या लेना है?
इसलिए अभी भी कहता हूँ, 'भगत बनाया भाभी ने। भाभी का तो सब से बड़ा उपकार मानना चाहिए'। और आखिर तक उनका उपकार माना था। इससे मुझे इस तरफ मुड़ने के बहुत से कारण मिल गए। उन्होंने मुझे ज्ञानी बनाया।
अब्स्ट्रक्शन से होता है प्रगति की ओर प्रयाण प्रश्नकर्ता : तो भाभी ने आपको अध्यात्म की ओर मोड़ा?
दादाश्री : बचपन से ही अध्यात्म तरफ झुकाव वाला स्वभाव था और उसमें ये मेरी भाभी थीं न, उनका अब्स्ट्रकशन था। अब्स्ट्रकशन से