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[8.1] भाभी के साथ कर्मों का हिसाब
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जाइए आप, उस तरफ से'। मुझे रास्ता दिखा दिया। एड्रेस वगैरह सब लिखवा लिया और मैं वहाँ पहुँच गया।
प्रश्नकर्ता : यों तो साधारण वाक्य है यह कि घर छोड़कर गए, और उन भाई से एड्रेस नहीं लिया था अहमदाबाद का। आप कहते हैं कि 'एड्रेस तो मैं किसी का नहीं लेता था, मुझे किसी की ज़रूरत ही नहीं थी।
दादाश्री : मुझे ज़रूरत नहीं थी, एड्रेस ही नहीं लेता था न! किसी का भी एड्रेस नहीं लिखता था। कोई अगर लिखकर देता था तो वह भी खो जाता था मेरे पास से।
प्रश्नकर्ता : और अगर ज़रूरत होती थी, अब ज़रूरत पड़ी उन भाई की तो किस तरह वहाँ पहुँचना है, उसकी सूझ भी आ गई।
दादाश्री : हाँ, उसकी सूझ उत्पन्न हो गई।
प्रश्नकर्ता : उस होटल वाले से पूछा कि 'भाई, यह कोयले वाला कहाँ रहता है?'
दादाश्री : हाँ, कोयले का बिज़नेस करता था न, इसलिए मैंने हिसाब लगाया। सूझ पड़ी कि 'यह किसी होटल वाले से पूछो'। फिर उन्होंने बताया। इस तरह ऐसी सूझ पड़ती है।
घूमता-फिरता था, बातें करता था लेकिन बोधकला वाला जीवन था। इस बोधकला की वजह से ढाल की पोल मिल गई, वर्ना क्या घरघर पूछने जा सकते हैं कि हमारे मित्र कोयले के व्यापारी हैं उन्हें पहचानते
हो?
धन्य भाग्य हमारे कि आप हमारे घर आए ढाल की पोल पहुँचा और उनके घर गया। नीचे से आवाज़ लगाई कि 'जमनादास, जमनादास, जमनादास है क्या?' तो जमनादास तो सुनकर बहुत खुश हो गए कि 'ओहो! मेरे यहाँ आए हैं ! वह तो इतना उत्साहित था, बहुत ही खुश हो गया। क्योंकि मैं जाता नहीं था न !