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ज्ञानी पुरुष (भाग - 1)
हों, ऐसा सब था । किसी का भी नंबर - वंबर वगैरह नहीं रखता था । तब फिर इस तरफ चला तो एक दरवाज़ा ढूँढकर, उस दरवाज़े में घुस गया। फिर नाम जान लिया दरवाज़े का । फिर चलते-चलते रास्ते में कुछ भी नहीं मिला। फिर हुआ कि अब यह घर कहाँ ढूँढूँ और इस सर्दी में यह सब कैसे हो पाएगा? इस तरह तो पूरी रात घूमता रहूँगा फिर भी नहीं मिलेगा। हम अहमदाबाद के गाइड नहीं हैं । अहमदाबाद शहर में घूमा नहीं था। अहमदाबाद के रास्ते नहीं जानता था । शायद दो-चार बार ही गया था, बहुत बार नहीं गया था ।
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फिर बुद्धि से सोचा कि यह मित्र कोयले का व्यापारी है इसलिए कुछ ऐसा रास्ता ढूँढ निकालें कि वे कहाँ मिलेंगे ! हाँ, उन दिनों की अक्ल की बात बता रहा हूँ कि मेरी अक्ल क्या काम कर रही थी उस दिन । अंदर ब्रिलियन्सी तो थी न ! तो टैली कर लेता था कि भले ही इसका एड्रेस नहीं है, लेकिन वह इंसान कोयले का व्यापार करता है तो इसे कौन पहचानता होगा ? तो अंदर अक्ल ए खुदा ने बताया। कहा कि, 'कोयले का व्यापार करता है तो होटल वाले उसे पहचानते होंगे। सभी होटल वाले उसके ग्राहक होंगे'।
प्रश्नकर्ता: हाँ, कोयले खरीदने वाले ।
दादाश्री : इसलिए हमने होटल वाले से पूछा । कोई होटल वाला जानकार मिल आएगा । कोई होटल वाला तो उसका परिचित निकलेगा । हम होटल वाले से पूछते-पूछते जाएँगे तो कुछ हो पाएगा।
तो रास्ते में जाते-जाते होटल वाले से पूछने लगे कि 'भाई, जमनादास पटेल करके कोयले के व्यापारी हैं, क्या आप उन्हें पहचानते हैं?' ऐसा करते-करते आठ दस होटलों पर पूछा। सात-आठ लोगों ने कहा कि 'नहीं, भाई हम नहीं पहचानते' । इस तरह एक-एक होटल पर पूछते-पूछते गए तब एक होटल वाले ने कहा कि 'हाँ, पहचानते हैं । आप कहो तो आपको वहाँ छोड़ने आएँ । जमनादास करके हैं, ढाल की पोल में'। मैंने कहा, 'ढाल की पोल कहाँ है ?' तो कहा, 'ढाल की पोल यहाँ नज़दीक ही है। अब यहाँ से होकर इस रास्ते पर से सीधे चले