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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
उसने कल्पना भी नहीं की होगी कि आएँगे! उसने ऐसी आशा ही नहीं रखी होगी न कभी!
वह भागते-भागते नीचे आया, दोनों जने नीचे आए। 'धन भाग्य हमारे कि आप हमारे यहाँ आए! हमारे आनंद की कोई सीमा नहीं है'। वह तो एकदम ही द्रवित हो गया उस दिन, बहुत ही प्रेम जताया उस दिन। अब उन्होंने ऐसा समझा कि खुशी से आए होंगे! मैं कैसे आया था, वह मैं ही जानता था। मैंने कहा, 'अच्छा हुआ, लेकिन भाई पहले खाना निकाल। खाना खाने के बाद बातें करेंगे'।
फिर, खाना तैयार रहा होगा तो उन्होंने परोस दिया। फिर खाना खाकर, फिर जब आराम से सोने गए तब मैंने बताया, 'मैं यहाँ रहने आया हूँ। मैं फँसकर यहाँ आया हूँ, यों ही नहीं आया हूँ। मैं भागकर आ गया हूँ'। तब कहा, 'लेकिन ऐसा क्यों कर रहे हो?' मैंने कहा, 'मेरी भाभी के साथ नहीं बनती है। पूर्व जन्म का हिसाब अलग तरह का है।
सुख में से ढूँढा दुःख, संडास में भी क्यू उसके बाद फिर सुबह-सुबह संडास के सामने दस-पंद्रह लोगों की लाइन लगी थी। मैंने कहा, 'अरे! भला हो इस शहर का! यह मैंने क्या देखा? यह कहाँ से मिला मुझे ?' लेकिन जाऊँ कहाँ ? घर से भागकर आए थे।
अब भाई! इसमें भी दुःख है आपको! बाकी सब जगह पर दुःख हो तो ठीक है, यहाँ भी दुःख है आपको? जिसने जुलाब लिया हो उस बेचारे का क्या होगा? हं? भले ही इतने सारे सुख हैं इन लोगों को, लेकिन उस सुख में ही मुझे दुःख महसूस हुआ। देखो यह खोज़ की है इन लोगों ने, सुख में भी दुःख ढूँढ निकाला! किसमें दुःख ढूँढ निकाला?
प्रश्नकर्ता : सुख में दुःख ढूँढ निकाला।
दादाश्री : नहीं, सुख की वजह से दु:ख मिला। बेहिसाब सुख है यहाँ अभी। ये संडास बंद कर दें और कहें कि जो जल्दी उठकर साढ़े