________________
218
ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
प्रश्नकर्ता : उनका ऐसा रौब पड़ता होगा!
दादाश्री : पूरे मुहल्ले में रानी जैसा रौब रखती थीं। अब उनका इतना रौब नहीं रहा है लेकिन तब हमारे भाई की वजह से उनका रौब रहता था। भाई तो मानो जैसे राजा ही थे लेकिन ये महारानी की तरह घूमती थीं साथ-साथ! मुहल्ले के लोग तो उन्हें 'राजा और रानी' ही कहते थे। हमारे भाई का बहुत दबदबा था उस मुहल्ले में, बहुत रौब था, इसलिए उन्हें 'महारानी' कहना पड़ता था। 'आईं ! महारानी जी' ऐसा कहते थे। भाई की वजह से तो उनकी कीमत बढ़ गई, वर्ना भाभी की क्या कीमत? भाई के नाम पर रौब जमाती थीं, लोगों को डाँटती रहती थीं, ऐसा सब करती थीं।
प्रश्नकर्ता : भाभी को तो बहुत सुख था।
दादाश्री : भाभी को बहुत सुख था, भाभी ने बहुत सुख भोगा। बीस साल पति का सुख भोगा उन्होंने। उसके बाद विधवा हुईं। पचास साल से (दादाश्री की उपस्थिति में दिवाली बा 80 साल की थीं, तब दादाश्री उनके लिए पचास साल कह रहे हैं) आराम से जी रही हैं वे, पुण्यशाली स्त्री! हमारी भाभी ने जो महारानी पद भोगा है, उसका रौब, वह सख्ती अभी भी जाती नहीं है न!
स्त्री चरित्र को पहचानना सीखे भाभी से प्रश्नकर्ता : दादा आप कई बार कहते हैं कि आप भोले थे, लेकिन भाभी से स्त्री चरित्र के पाठ सीखे और स्त्री चरित्र को पहचानने में आप मज़बूत हुए, तो आपने भाभी में ऐसा तो क्या देखा कि आपको ऐसा सीखने मिला?
दादाश्री : जब मणि भाई जीवित थे तब, जब वे खाना खाने बैठते थे तब हमारी भाभी रोज़ उनसे कहती थीं कि 'आपके बिना मैं जी नहीं पाऊँगी'। दूसरी बार शादी की थी न! तो वह जोड़ी कुछ अलग तरह की होती है।
मुझे मन में ऐसा होता था कि 'भाभी ने यह पानी पिला दिया।