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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
पूछा कि 'भाई तो गए, तो आप क्यों नहीं चली गईं? आप कहती थीं न?' तो कहा, 'ऐसे कोई मरता होगा? आप जाओ'।
प्रश्नकर्ता : 'आप जाओ,' कहती थीं...
दादाश्री : हं, कपट बहुत था, कपट समझ गया था मैं। यदि मणि भाई नहीं होते न तो, तो तीन मिनट में सीधा कर देता। अगर मणि भाई मुझसे कहते कि 'इसे सीधा कर दे,' तो तीन मिनट में सीधा कर देता उन्हें। जिंदगी भर के लिए सीधा कर देता, सारा खेल भूल जाती लेकिन मेरा वहाँ चलता नहीं था न, तो फिर वहाँ मैं क्या बोल सकता था? वर्ना मैं कह देता कि 'इससे तो वह इस्त्री अच्छी कि वह कपड़े तो इस्त्री कर देती है, जबकि यह स्त्री तो किसी काम नहीं आती'। पहचानते थे पैर से सिर तक भाभी को, इसलिए नहीं आए
गुनाह में प्रश्नकर्ता : दादा, जब आप भाभी का कपट समझ जाते थे तब फिर व्यवहार में उनके साथ टकराव हो जाता था क्या?
दादाश्री : हाँ, एक बार मेरे और उनके बीच झंझट हो गई। मेरी और उनकी बनती नहीं थी। वे बोलती रहती थीं, तब फिर उनके प्रति मेरी वाणी कैसी निकलती? लोग भी समझ जाते थे कि सिर दुःख जाए ऐसी यह वाणी निकली। कैसी? सिर दुःख जाए, ऐसी।
वे बोलती ही ऐसा थीं न, तो जवाब भी उसी तरह के होते थे। क्योंकि हमारी भाभी मुझे गुनहगार साबित करने की कोशिश करती रहती थीं लेकिन मैं भाभी को पैर से सिर तक पहचानता था, इसलिए मैं तुरंत कह देता था। मुझे भी बोलना आता था, मैं बोले बगैर रहता नहीं था न!
दिवाली बा कहती थीं, 'आप बोलते हो तो मेरा सिर दुःख जाता है'। मैंने कहा, 'जब आप बोलती हो तब क्या मेरा सिर नहीं दुःखता होगा?' वे मुझसे भी ज्यादा भारी शब्द बोलती थीं, इतना-इतना बोलती थीं। इन्हें (हीरा बा को) बोलना नहीं आता था। वे और बा दोनों ही नहीं बोलते थे बेचारे। हम दोनों आमने-सामने खूब बोलते थे, तो बड़े