________________
212
ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
नहीं गए किसी के लिए स्मशान में, फिर भी लोग आए ___ बड़े भाई की मृत्यु के समय मेरे मन में भय घुस गया कि 'अगर कोई नहीं आया तो क्या करूँगा? अगर कोई स्मशान में नहीं आया तो क्या करूँगा? सभी लोग सत्याग्रह कर लेंगे तो?' क्योंकि हुआ क्या था कि वे किसी के लिए भी स्मशान में नहीं गए थे। ऐसे पाटीदार थे भाई! किसी के वहाँ वे खुद स्मशान नहीं जाते थे और मुझे भी नहीं जाने देते थे। कहते थे, 'अरे! स्मशान में नहीं जाना है'।
तब मैंने कहा, 'जब बा मरेंगे तब कौन आएगा?' तब वे कहते थे, 'वह तुझे नहीं देखना है। स्मशान में नहीं जाना है'। इसलिए मैं नहीं जाता था। लेकिन फिर मुझे भी ऐसा भय रहा करता था। हमारी बा बूढ़ी थीं। तब मैंने कहा, 'अगर बा मर जाएँगी तो अपने यहाँ कोई नहीं आएगा'। लेकिन मणि भाई को तो किसी की भी नहीं पड़ी थी। इसलिए मैं चुपचाप जाकर आ जाता था। हम तो थे व्यवहारिक इंसान, व्यवहार संभाल लेते थे। लेकिन फिर बा से पहले तो उनकी मरने की बारी आ गई।
लेकिन जब वे गए न, उस दिन चालीस-चालीस लोग बैठे हुए थे! कोई भी आँच नहीं आई।
प्रश्नकर्ता : ईश्वर काका तो यह बात बताते हुए रो पड़े थे।
दादाश्री : ईश्वर भाई रो पड़ते थे। वे तो, जब मणि भाई रात को ढाई बजे मर गए न, तो 'ओ! मेरे भाई रे' करके खूब रोए थे। 'अरे, हमें तो रोना नहीं आ रहा है फिर आपको क्यों रोना आ रहा है?' वे ईश्वर भाई इतने भावुक थे। भावुकता रहित नहीं थे। भावुक थे, वे थे ईश्वर भाई घड़ियाली।
अंत में शराब छोड़कर किए उपवास मणि भाई पुण्यशाली थे, लेकिन क्या हो सकता था? कम उम्र में ही मृत्यु हो गई न!