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[7] बड़े भाई
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बाहर सिंह माने जाते थे लेकिन यह बुरी आदत थी इसलिए उनकी वैल्यू नहीं रही। ब्रान्डी की आदत थी न, वे ब्रान्डी पीते थे तो बस, खत्म! इंसान के रूप में माने जाने की कीमत ही कहाँ रही? पी लिया तो सब खत्म। चाहे कैसा भी प्रभावशाली व्यक्ति हो लेकिन यदि उसमें यह आदत हो तो वह खत्म हो जाता है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन मुख्यत: वह ज़ोर तो नहीं जाता न, दादा?
दादाश्री : ज़ोर तो नहीं जाता लेकिन शराब की आदत थी न, इसलिए लोगों ने नकार दिया। यों भी उनका वज़न नहीं पड़ने देना चाहते थे तो इस लत के बहाने नकार दिया लोगों ने कि 'जाने दो न, पीते हैं।
प्रश्नकर्ता : क्या उनका स्पिरिचुअल लेवल हाई था, दादा? दादाश्री : स्पिरिचुअल लेवल पर से इस उल्टी लाइन पर आ गए। पुण्य के प्रताप से रौब सहित बिस्तर पर ही मृत्यु हुई
जानते हो हमारे बड़े भाई को सब लोग क्या कहते थे, 'मणि भाई, आप बिस्तर पर नहीं मरोगे'। क्या कहते थे?
प्रश्नकर्ता : बिस्तर पर नहीं मरोगे।
दादाश्री : जो भी आता था, वह ऐसा ही कहता था कि 'मणि भाई, आप बिस्तर पर नहीं मरोगे। लोगों पर आप इतनी ज़ोर-ज़बरदस्ती करते हो, तो बाहर ही कोई आपको उड़ा देगा'। तो वे कहते थे, ‘बाहर नहीं मारे जाएँगे, हम तो बिस्तर पर ही मरेंगे! हम तो राजसी इंसान हैं !'
हमारे एक चाचा थे चतुर भाई करके, तो वे कहते थे कि 'मणि भाई, तू बिस्तर पर नहीं मरेगा, बाहर ही मरेगा। कोई तुझे मार देगा'। तब वे कहते थे, 'वह आपकी समझ की बात है, मेरी बात अलग है। मैं बिस्तर पर मरूँगा। आप आना'। तो वे ऐसे पुण्यशाली थे कि बिस्तर पर ही मरे। नहीं तो ऐसा इंसान बिस्तर पर नहीं मरता है। किसी को भी नहीं छोड़ा था उन्होंने। फिर भी, रौब से बिस्तर पर मरे, आराम से। मरते समय ऐसा कहने वाले उनके पास ही खड़े थे, मैंने देखा था।