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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
बिच्छुओं को मार देते थे इसलिए बड़े भाई को ज़्यादा
काटते थे उनकी खोपड़ी बहुत भयंकर थी, राजवंशी खोपड़ी थी ज़बरदस्त ! वे अलग ही तरह के इंसान थे, हमें नहीं पुसाता था। बिच्छू को भी मार देते थे, लो! और फिर वे ऊपर लटका देते थे। किसने उन्हें ऐसा ज्ञान दिया होगा? तब मैंने उन्हें समझाया कि 'मुझे, बा और हीरा बा को, हम तीनों को बिच्छू नहीं काटते, आप दोनों को (बड़े भाई और भाभी को) काटते हैं। सिर्फ आप दोनों ही बिच्छुओं को मारते हो'। तब उन्होंने कहा 'तू भगत है, तू बैठ यहाँ पर। मुझे तेरी बात नहीं सुननी है'। तो इस तरह मारते ही रहते थे जबकि हमें तो कभी बिच्छू मारने का ख्याल तक नहीं आया।
उन दिनों तो बड़ौदा में जगह-जगह पर बिच्छू काटते थे। तो 1938-39 तक बिच्छू काटते थे, फिर खत्म हो गए। उस हिटलर ने मंथन किया न, उसके बाद का काल कुछ और ही तरह से बदल गया! उसने बिलोया तो उससे बदल गया, वर्ना अंत ही नहीं था बिच्छुओं का! वे बहुत काटते थे, उन दोनों को लेकिन मुझे तो बिच्छू वगैरह ने कभी भी नहीं काटा। हमारे बड़े भाई को हर महीने बिच्छू काटता था। उन्हीं को ढूँढकर काटता था। मुझे नहीं पुसाती हिंसा, बड़े भाई से अलग था इस बारे में
एक खटमल को मारने के लिए वे चार दियासलाई जलाते थे और उसे सती बना देते थे। मुझे तो यह पुसाता ही नहीं था न! मैं इससे कुछ अलग पक्ष में था, हिंसा पक्ष से बिल्कुल अलग। हिंसा पक्ष मुझे पुसाता ही नहीं था, यह मारना-करना!
ऐसे-ऐसे तूफान सब देखे थे मैंने। इस तरह तो संसार में से कैसे छूट सकते हैं? लेकिन यह तो पुण्य अच्छा था कि छूट गया, वर्ना नहीं छूट सकते थे। कैसे छूटते? लेकिन बा के ये संस्कार थे न! बा बहुत संस्कारी थीं! हाँ, इसीलिए सभी लोग बा से कहते थे कि 'अरे बा, आप